लॉकडाउन के बाद पूरे देश की आÌथक स्थिति चरमरा गई है। छोटे उद्योग–धंधे वाले‚ छोटे पूंजीपति वर्ग‚ कारीगरों के लिए सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। सिर्फ राशन दुकान और फल–सब्जी विक्रेता को छूट दी गई है। क्या दूसरे व्यवसाय करने वाले लोग ‘हवा' पीकर रहते हैंॽ इन लोगों की जमा पूंजी खत्म हो गई है। भूखों मरने और सड़कों पर आने की नौबत आ गई है। मजदूर‚ राजमिस्त्री‚ ऑटो पार्ट्स के दुकानदार‚ वाहन चालक जैसे लोगों का जीवन मुश्किल में है। अब तक के परिणाम से जब तय हो गया है कि लॉकडाउन कोविड–१९ का कोई इलाज‚ हल नहीं है‚ तो सामाजिक दूरी तय कर के सुरक्षा के नियमों के तहत सरकार को अनिवार्य सेवाएं बहाल कर देनी चाहिए।
बुधवार, 27 मई 2020
चीन की हरकत
जहां एक तरफ आज जब सारी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से जूझ रही है‚ वहीं हमारे देश के नापाक पड़ोसी देशों को शरारत करने की सूझ रही है‚ जो बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है। हमारे देश के साथ लगती सीमाओं पर समय–समय पर चीन अपनी हरकतों से साबित कर देता है कि इसके दिल में चोर है और यह हमारे देश के साथ दोस्ती कि आड़ में दुश्मनी भी खूब निभाता है। हमारा देश चीन को आÌथक रूप से कमजोर करने के लिए अपने यहां चीनी बाजार का वर्चस्व कम करे और कोरोना के कारण इसकी बिगड़ी छवि का फायदा उठाते हुए वहां स्थापित कंपनियों को का न्यौता दे तो इसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी‚ सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी।
भरोसा जगाना जरूरी
मूलभूत आवश्यकताओं के पूरा ना होने के कारण मजदूरों का जमावड़ा शहरों से गांव की तरफ जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मजदूरों के लिए शहरों में दोबारा रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगेॽ देश के हालात फिलहाल खराब ही हैं और परिस्थितियां बद–से–बदतर होती जा रही है। ऐसे में रोजगार की अपेक्षा करना असंभव सा लगता है। सरकार को परिस्थितियों को काबू में करने के लिए बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है और हताश लोगों के मन में बेहतर होने का भरोसा जगाना है।
सतर्क रहें
इस समय हर किसी को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता की जरूरत है। शरीर के पोषण के लिए हमें खाद्य पदार्थों की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रोटीन‚ वसा‚ कार्बोहाइड्रेट‚ विटामिन तथा खनिज लवण आदि की पर्याप्त मात्रा को आहार में शामिल करना आवश्यक है तथा ये सभी पोषक तत्व संतुलित आहार से ही प्राप्त किए जा सकते हैं। यह तभी संभव है‚ जब बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्री‚ दालें‚ अनाज‚ दुग्ध उत्पाद‚ मसाले‚ तेल इत्यादि मिलावटरहित हों। मिलावटी पदार्थों से बचने और अपमिश्रण की पहचान के लिए प्रशासन के साथ–साथ हमें भी जागरूक होने की जरूरत है। कोरोना काल में वैसे भी हमें ज्यादा जागरूक बनने की जरूरत है।
नेहरू को श्रद्धांजलि
देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले‚ आधुनिक भारत के शिल्पकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित जवाहरलाल नेहरू की आज पुण्यतिथि है‚ आज हम इस महान हस्ती के बारे में कुछ जानने का प्रयास करते हैं। नेहरू एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ–साथ आकर्षक व्यक्तित्व के धनी‚ ओजस्वी वक्ता‚ उत्कृष्ट लेखक‚ इतिहासकार‚ आधुनिक भारत का सपना देखने वाले महान स्वप्नoष्टा थे। सबसे महवपूर्ण बात यह है कि देश में आधुनिक भारत के शिल्पकार के खिताब से नवाजे जाने का श्रेय अगर किसी एक व्यक्ति को जाता है तो वो निःसंदेह पंडित जवाहरलाल नेहरू को ही जाता है। नेहरू ने अपने जीवनकाल में जो काम किए थे‚ आज उसी की नींव पर बुलंद व सशक्त भारत की नई तस्वीर रची जा रही है।
क्या है मकसदॽ
अब नांदेड में संत और उनके सेवादार की लोमहर्षक हत्या। पालघर से लेकर नांदेडÃ तक जारी हत्या की श्रृंखलाओं में कई संत अपनी जान गंवा चुके हैं। पंजाब में भी संत योगेश्वर की हत्या हुई‚ होशियारपुर में संत पुष्पिंदर महाराज पर जानलेवा हमला हुआ‚ उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दो साधुओं की हत्या हुई। निहत्थे संतों की हत्या की घटनाएं रुûक क्यों नहीं रही हैंॽ केंद्र और राज्य सरकारें निहत्थे संतों की हत्या रोकने के लिए गंभीर क्यों नहीं हैंॽ क्या यह सिर्फ क्षणिक अपराध का प्रश्न है या फिर साधुओं की हत्या के पीछे कोई साजिश हैॽ क्या यह अंधविश्वास का प्रश्न है या फिर कोई विश्वास के साथ संगठित अपराध का मसला हैॽ
एक मुश्किल डगर
कहने और सुनने में स्वदेशी और आत्मनिर्भरता बहुत अच्छे शब्द लगते हैं, मगर इनकी डगर बहुत कठिन है। वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में तो यह शायद ही संभव है। यह सही है कि स्वदेशी उत्पादों के इस्तेमाल से ही आत्मनिर्भर बना जा सकता है, क्योंकि ये एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। सर्वप्रथम जनसंख्या नियंत्रण का प्रयास करना होगा। उसके बाद प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण की व्यवस्था करनी होगी। निजीकरण को भी समाप्त करना होगा। जाहिर है, इसके लिए जरूरी नीयत और नीति का अपने यहां अभाव है। जनवादी नीतियां और ठोस प्रोग्राम न होने से ही सरकार शानदार काम करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में बेचने पर आमादा है। ऐसे में, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता कतई नहीं आ सकतीं।
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