शुक्रवार, 12 जून 2020

हाथी के नाम हिस्सा

कुछ दिन पूर्व जहां केरल में किसी खुदगर्ज इंसान ने अपने खेल के लिए अनानास के भीतर पटाखे छुपा कर तीन जिंदगियों की जान ली थी। हथनी की‚ उसके बच्चे की व उस भरोसे की जो हथिनी ने हम इंसानों पर दिखाया था। परंतु पटना के दानापुर के जानीपुर में रहने वाले अख्तर इमाम ने मानवता की प्रतिमान दी है। हाथियों के नाम अपना सब कुछ निछावर करने के बाद अब जानीपुर में सब लोग अख्तर को हाथियों वाला कहकर पुकारते हैं क्योंकि उन्होंने अपने हिस्से की लगभग ५ करोड़ रुûपये की जायदाद‚ खेत–खलिहान‚ मकान‚ बैंक बैलेंस‚ सभी दोनों हाथियों–मोती और रानी–के नाम कर दिया है।

निजी शिक्षकों की पीड़ा

वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लगभग तीन महीने की देशबंदी के कारण कई क्षेत्रों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इनमें से एक निजी क्षेत्र के शिक्षक भी हैं। लॉकडाउन में स्कूल तो बंद हुए ही, सरकार ने दिशा-निर्देश जारी करके बताया कि बच्चों की फीस के लिए अभिभावकों को परेशान नहीं किया जाएगा। इस बात का समर्थन पूरा देश कर रहा है कि लॉकडाउन के दौरान अभिभावकों पर फीस का दबाव डालना गलत है। मगर इस बात से भी इनकार करना मुश्किल है कि जो शिक्षक दूसरे बच्चों के जीवन को संवारने के लिए अपनी जान लगा देते हैं, आज उनका जीवन अंधकारमय होने लगा है। उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। हमारे समाज और सरकार, दोनों को निजी शिक्षकों की परेशानियों की ओर ध्यान देना चाहिए।

फिर से विचार हो

सीबीएसई ने 12वीं कक्षा की बची हुुई परीक्षाएं 1 जुलाई से लेने की बात कही है। उसका कहना है कि प्रत्येक परीक्षा केंद्र पर दैहिक दूरी का कड़ाई से पालन किया जाएगा। मगर यह भी सत्य है कि पूरे देश में संक्रमण और मौत के आंकडे़ विकराल रूप लेते जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या जुलाई में लाख को पार कर जाएगी, जबकि मुंबई पहले ही संक्रमण के मामले में वुहान को पीछे छोड़ चुका है। ऐसे में, जब तमाम छात्र, अध्यापक और अभिभावक परीक्षा के लिए घर से बाहर निकलेंगे, तो कोरोना से संक्रमित होने की आशंका बहुत हद तक बढ़ जाएगी। मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए सीबीएसई अपने फैसले पर फिर से विचार करे।

बढ़ती ताकत

चीन दोतरफा षड्यंत्र रचकर भारत को घेरना चाहता है। पहले तो उसने नेपाल को हमारे खिलाफ उकसाया, और फिर लद्दाख में अपनी फौज बढ़ाई। खैर, नेपाल ने बाद में अपनी गलती मान ली, लेकिन चीन का जवाब देने के लिए भारत ने भी सीमा पर अतिरिक्त फौज भेज दी। इससे चीन के सुर अचानक बदल गए। वैसे, चीन को यदि अब भी लगता है कि भारत उससे कमजोर है, तो उसे अपने भ्रम से ऊपर उठ जाना चाहिए। यह हमारी बढ़ती ताकत का ही नतीजा है कि अब हम चीन को उसी की भाषा में जवाब देने लगे हैं।

और भी मर्ज हैं

आजकल कोरोना संक्रमितों के अलावा बाकी मरीजों को बहुत परेशानी हो रही है। खुद को और अपने क्लीनिक को सुरक्षित रखने के लिए कई निजी डॉक्टर टालमटोल का रवैया अपनाते हैं। बीमार को अपराधी-सा एहसास कराते हैं। किस मोहल्ले से आए हो, आधार कार्ड दिखाओ, अपनी जांच कराके आओ, चौदह दिन बाद आना, जैसी बातें की जाती हैं। खांसी-छींक आ जाए, फिर तो भगवान ही मालिक है। अगर यही हाल रहा, तो कोरोना से तो लोग कम करेंगे, बाकी बीमारियों से ज्यादा परेशान हो जाएंगे।

संयमित हो करें दर्शन

कोरोना काल में बंद सभी पूजा-स्थलों के कपाट प्रार्थनाओं के लिए खुल तो गए हैं, पर नई व्यवस्थाओं को मानते हुए ही भक्तों को अपनी श्रद्धा अर्पित करनी होगी। पूजा-स्थल तो किसी भी धर्म का हो सकता है, लेकिन कोरोना का कोई धर्म नहीं है। भक्तों ने ईश्वर को प्रतीकात्मक रूप से मास्क लगाकर और कोरोना को देवी मानकर उसके प्रकोप से बचने के लिए पूजा-अर्चना तक कर डाली, लेकिन अंधविश्वास की यह बेल भी कोरोना के प्रकोप को रोक न सकी। अनलॉक-1 मेें दर्शन के प्यासे भक्तों की भक्ति की असली परीक्षा होगी। दर्शनार्थियों को कोरोना से बचने के लिए सतर्क रहकर ही पूजा स्थलों में जाना चाहिए।

बुधवार, 10 जून 2020

बेरोजगारी की मार

कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के बाद देश का युवा वर्ग अपने रोजगार की सुरक्षा के लिए बहुत ही आशंकित है। उनको यह सुनने-पढ़ने को मिल रहा है कि आगामी वर्षों में रोजगार का बड़ा संकट आने वाला है। इस महामारी से हुई जान की हानि तो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही है, लेकिन इससे परोक्ष रूप से देश में रोजगार, शिक्षा व उत्पादन की भी अभूतपूर्व हानि हुई है। सरकार के प्रयास और नागरिकों की जागरूकता से अब तक हम शानदार तरीके से इस महामारी से लड़े हैं, और उम्मीद है कि आगे भी यूं ही हम लड़ते रहेंगे। मगर देश के नौजवानों के मन में अपने भविष्य को लेकर आशंकाएं उपजने लगी हैं। सरकारी रोजगार के अवसर उन्हें धूमिल होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में, हमें खास तौर से उनके लिए नीतियां बनानी होंगी। जरूरत धैर्य बनाए रखने की भी है, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण देश कहीं न कहीं विकास की कसौटी पर बहुत पीछे चला गया है। यदि हमने धैर्य, सहयोग और आत्मनिर्भरता से इस परिस्थिति का सामना कर लिया, तो इसके परिणाम दूरगामी निकलेंगे।

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...