रविवार, 31 मई 2020

भविष्य की चुनौतियां

हर महामारी ने समय-समय पर मनुष्य के लिए संकट पैदा किया है, लेकिन उसके साथ वह इंसान को कई सीख और संदेश भी देकर गई है। वर्तमान में अपने चरम पर चल रही कोरोना महामारी के साथ भी ऐसा ही है। कोरोना से हमारी जंग जारी है। बतौर सबक उत्तर प्रदेश जैसे राज्य श्रमिक आयोग के गठन की घोषणा कर रहे हैं, तो केंद्र सरकार भी ‘माइग्रेंट वर्कर्स' को परिभाषित करने जा रही है, जो आने वाले वर्षों में काफी राहतपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं। एक सबक यह भी है कि प्रकृति से खिलवाड़ जानलेवा हो सकता है, और अगर हम यूं ही उसके साथ छेड़छाड़ करते रहे, तो वह अपने घाव खुद भर सकती है। तो क्या आगे भी हम पर्यावरण को स्वच्छ रखेंगे? लॉकडाउन अवधि में अपराधों में आई कमी कायम रखेंगे? पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण बंद करेंगे? इन सवालों का सटीक जवाब अभी नहीं दिया जा सकता, लेकिन गांधी जी के स्थानीय स्वशासन के मंत्र को यदि हम अपना लें, तो देश भर में होने वाला भीतरी पलायन भी रुक सकता है। राज्य सरकारों को इसकी तरफ सोचना चाहिए।

मदद वाले हाथ

बॉलीवुड पर संवेदनशील मामलों पर चुप्पी बरतने के आरोप अक्सर लगते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान अभिनेता सोनू सूद द्वारा गरीब लोगों को घरों तक पहुंचाने के लिए किए गए प्रयास सराहनीय हैं। सोनू सूद जैसे अभिनेताओं से सरकार के जिम्मेदार लोग बहुत कुछ सीख सकते हैं कि जनता के पैसे को जनता पर खर्च कर कैसे जनसेवा की जा सकती है। कोरोना वायरस बेशक आर्थिक रूप से सरकारों की कमर तोड़ रहा है, लेकिन अभिनेता सोनू सूद जैसे मदद करने वाले लोगों के सामने आने वाली प्रशासनिक मुश्किलों का तुरंत निपटारा तो सरकार कर ही सकती है। ऐसा करने से मदद करने वाले हाथ और ज्यादा मजबूत होंगे।

इंटरनेट का बढ़ता दायरा

डिजिटल दुनिया का साम्राज्य बढ़ता ही जा रहा है। आलम यह है कि सूक्ष्म से लेकर विशाल तक, सभी चीजों के लिए डिजिटल माध्यम को अपनाने की मांग हो रही है। एक तरफ, डिजिटल के फायदे हैं, तो दूसरी तरफ इसके कुछ नुकसान भी हैं। सभी के लिए, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में, जहां इंटरनेट की सुविधा नहीं है, वहां डिजिटल नहीं, नॉर्मल दुनिया की जरूरत है। सरकारी स्तर पर भी अब हर जगह डिजिटल की मांग है, पर उसमें भी यह सबके लिए संभव नहीं। सरकारी क्षेत्र हो या निजी, किसी भी जगह डिजिटल के साथ-साथ सामान्य सुविधा भी आवश्यक है। डिजिटल के साथ ऐसी व्यवस्था भी जरूरी है, जो सबके लिए उपयुक्त हो और सब उसका आसानी से इस्तेमाल कर सकें।

चौधराहट मंजूर नहीं

भारत-चीन सीमा पर उत्पन्न तनाव को कम करने के लिए पिछले कुछ दिनों से कूटनीतिक और राजनीतिक प्रयास किए जा रहे हैं। इन कोशिशों का सकारात्मक परिणाम भी सामने आया है। अब चीन के रुख में नरमी दिखने लगी है। मगर, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस बीच मध्यस्थता की पेशकश कर दी। जाहिर है, वह भारत-चीन सीमा विवाद को नया रूप देने की कोशिश में हैं। इससे पहले जम्मू-कश्मीर पर भी ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की बात कही थी, जिसे भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। मौजूदा हालात में, जब अमेरिका-चीन के बीच व्यापार युद्ध चल रहा है और कोविड-19 पर उन दोनों में तकरार जारी है, तब अमेरिका द्वारा मध्यस्थता की बात कहना कहां तक प्रासंगिक है? सच्चाई तो यह है कि अमेरिका अपनी चौधराहट दिखाना चाहता है, जिसे हमें कतई नहीं मानना चाहिए।

सवाल तो पूछे ही जाएंगे

जिस देश का अनाज का भंडारण खाने से ३ गुना ज्यादा भरा पड़ा है‚ वहां कोई मां भूखों क्यों मर जा रही हैॽ ये सवाल हम कब और किससे पूछेंगेॽ निश्चित रूप से देश में अन्न के बफर स्टॉक रहने के बावजूद इस देश की कोई मां‚ कोई मजदूर‚ कोई भी गरीब ‘भूख' से मर रहा है! आखिर क्योंॽ इससे ज्यादा दुुख की बात और क्या हो सकती है! इसमें सीधे दोषी सत्ता पर कुंडली मार कर बैठे अशिष्ट‚ लापरवाह‚ अमानवीय‚ क्रूर सत्ता के कर्णधार हैं‚ जो ‘सबकुछ' रहते हुए भी इस देश की जनता को ‘भूखों मारने का दुष्कर्म' कर रहे हैं। 

जनता का साथ जरूरी

कोरोना वायरस महामारी थमने का नाम नहीं ले रही है। इसलिए लॉकडाउन की प्रक्रिया बढ़ाई जा रही है। शनिवार को केंद्र सरकार ने ३० जून तक देश में लॉकडाउन लगाने का निर्णय लिया है। इस बार लॉकडाउन को तीन चरणों में बांटा गया है। जिंदगी अब पटरी पर लौटने लगी है‚ लेकिन कोरोन का खतरा टला नहीं है। अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए ये रिययतें दी जा रही है। सवाल यह है कि जब कोरोना वायरस तेजी से अपने पैर पसार रहा है तो क्या ऐसे में लॉकडाउन में छूट उचित हैॽ सरकार के सामने ये बड़ी चुनौती है कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी को आगे बढ़ाने के साथ–साथ इस महामारी को कैसे हराया जाएॽ लोगों को भी अपने स्वास्थ के प्रति सचेत रहने की जरूरत है। क्योंकि सरकार अकेले इस युद्ध के सामना नहीं कर सकती 

जब तक जनता के साथ न मिले

ख्वाजा का काम बेमिसाल॥ भारतीय सिनेमा‚ साहित्य व पत्रकारिता की बेमिसाल शख्सियत ख्वाजा अहमद अब्बास की आज पुण्यतिथि है। फिल्मों और साहित्य में उनके योगदान का हर कोई कायल है। अब्बास भारतीय सिनेमा‚ साहित्य व पत्रकारिता की सम्मानित शख्सियत हैं। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व हम सबके लिए प्रेरणादायी है। अब्बास ने सातवीं तक की शिक्षा अपने शहर पानीपत में ही प्राप्त की। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से १९३३ में बीए और १९३५ में एलएलबी की पढ़ाई पूरी की। वे १ जून १९८७ को मृत्यु से पहले भी अपनी फिल्म–एक आदमी की डबिंग में लगे हुए थे। उनका काम हम सबके लिए एक बेमिसाल और अनमोल विरासत है

फरिश्ता बने सूद

मजदूरों के लिए लॉकडाउन शहरों से अपने गांवों–कस्बों की तरफ पलायन सबसे बड़ी समस्या है। मजदूरों की समस्या का हल निकालने के लिए कुछ जानी–मानी हस्तियां सामने आई उनमें से एक सोनू सूद हैं। मजदूरों को शहर से उनके गांवों–कस्बों तक सही सलामत भेज रहे हैं और मजदूरों के लिए फरिश्ते बन गए हैं। अब सवाल यह है कि क्या सोनू सूद की इस कोशिश से बाकी जानी–मानी हस्तियां लोगों की मदद के लिए आगे आएंगीॽ चाहे नेता हो या अभिनेता सबको इस संकट की घड़ी में अपने–अपने स्तर पर योगदान देना चाहिए

शुक्रवार, 29 मई 2020

हाईटेक किसान

पहले गेहंू और अब लीची व आम ई-बाजार में बिकने लगे हैं। लॉकडाउन की वजह से परंपरागत बाजार और मंडियों के बंद होने से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि इस वर्ष किसान भयंकर आर्थिक तंगी से गुजरने वाले हैं। मगर, ई-कॉमर्स की ओर रुख करते हुए किसानों ने प्रधानमंत्री के ‘वोकल फॉर लोकल' के सपने को पूरा करने के लिए अपना पहला कदम बढ़ा दिया है। चाहे उन्नाव हो या भागलपुर, किसानों ने यह साबित किया है कि समय के साथ सही दिशा में बदलाव करने से न सिर्फ मुनाफा बढ़ता है, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी पैदा होते हैं। किसानों के इस कदम से उन्हें उपज का सही दाम मिलेगा। सरकार को किसानों के इस फैसले की सराहना करनी चाहिए। साथ ही, उन्हें ई-कॉमर्स के नए प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा किसान इससे जुड़ सकें।

तंग होते हाथ

आज पूरा देश कोरोना की मार झेल रहा है, लेकिन आम जनता की परेशानी यह है कि पैसों की कमी कैसे दूर की जाए? सरकार द्वारा योजनाएं चलाई गईं, पर उसका लाभ कितने लाभार्थियों को मिल रहा है, यह जगजाहिर है। ऐसे में, आर्थिक तंगी ने सबको हिलाकर रख दिया है। सरकारी नौकरी कर रहे लोगों का भी मानो यही हाल है कि किसी तरह गुजारा हो रहा है। आखिर कब तक यह तकलीफ आम लोगों के जीवन का हिस्सा बनी रहेगी? आलम यह है कि कुछ लोग अपना पेट पालने के लिए सब्जी, फल या दुग्ध विक्रेता बन गए हैं। हालांकि, सड़कों पर रोज काम मांगने वाला तबका यह भी नहीं कर सकता। माना जाता है कि देश में करीब 30 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करती है। लॉकडाउन से उनकी हालत तो और भी खराब हो गई है। कोरोना से उनकी जान जाए या न जाए, भूख से जरूर जा रही है। आखिर आम आदमी अपनी इन तकलीफों को किससे साझा करे? उम्मीद की किरण कहीं से नजर नहीं आ रही।

चीन की चाल

चीन की विस्तारवादी नीति हमेशा से विश्व के लिए संकट की वजह रही है। अब जो नया विवाद चीन ने वास्तविक नियंत्रण-रेखा (एलएसी) पर अपने सैनिकों की गतिविधियां बढ़ाकर पैदा किया है, उससे तो ऐसा लगता है कि बीजिंग को अपने अजेय होने का घमंड है। अपनी कुत्सित मानसिकता के कारण चीन हमेशा से ही भारत एवं समस्त विश्व के लिए मुश्किलें पैदा करता रहता है। यदि चीन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया, तो उसे मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए। भारत सरकार को भी चीन के साथ ‘जैसे को तैसा' की नीति अपनानी चाहिए।

बेरोजगारी भत्ता मिले

कोरोना संकट का यह काल केवल जान की हानि तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे आर्थिक संकट के साथ-साथ कई उद्योग-धंधों और रोजगार का अस्तित्व भी फिलहाल खत्म होता दिख रहा है। नतीजतन, उनमें काम करने वाले मजदूर, कर्मचारी-अधिकारी, सभी एकाएक बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में, उन्हें दूसरी राह तलाशनी पड़ रही है, जिसे खोजना मौजूदा वक्त में काफी मुश्किल भरा काम है। इस बढ़ती बेरोजगारी दर से निपटने के लिए आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई है। अभी इसे हकीकत बनने में कुछ वक्त लगेगा, लिहाजा बीपीएल जैसे कार्डधारकों को कुछ न कुछ सरकारी मदद तो मिल ही जाएगी। जिनको कोई राहत नहीं मिलेगी, वे हैं गैर-कार्डधारक। आज जब कई देश अपने बेरोजगार नौजवानों को भत्ता दे रहे हैं, तब हमारे देश में भी बिना भेदभाव और आरक्षण के यह बांटा जाना चाहिए। नौकरी गंवा चुके लोगों को बचाने का इससे बेहतर शायद ही कोई दूसरा उपाय है।

बुधवार, 27 मई 2020

स्वास्थ्य मद में बजट बढ़े

वर्तमान महामारी ने हमारी स्वास्थ्य नीति की अक्षमता को उजागर किया है। जहां सरकारी संस्थाएं अपनी पूरी क्षमता से महामारी के खिलाफ लड़ रही हैं, वहीं निजी क्षेत्र भारी-भरकम खर्चों के कारण आम आदमी की पहुंच से लगभग बाहर हो गए हैं। ऐसे में, स्वास्थ्य क्षेत्र के राष्ट्रीयकरण की मांग स्वाभाविक है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के भारी-भरकम खर्च उठाने के कारण ही प्रतिवर्ष करोड़ों लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं। ऐसे में, सरकार द्वारा सभी तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाए बिना गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों की सफलता संभव नहीं है। दिक्कत यह है कि हमारे देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का महज 1.2 फीसदी खर्च किया जाता है। बेशक, विशाल जनसंख्या और सरकार के सीमित संसाधनों को देखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं में निजी क्षेत्र की भागीदारी आवश्यक है, लेकिन सार्वजनिक खर्च में वृद्धि करना सबसे जरूरी है, ताकि सभी लोगों को स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं मिल सकें। 

अव्यवस्था भरी यात्रा

रेल व हवाई यात्राओं के दौरान सामने आ रही अव्यवस्थाओं को देखते हुए भी संबंधित मंत्रियों का ध्यान समस्या के समाधान की तरफ कम है और विरोधियों को नीचा दिखाने में ज्यादा है। जब एक श्रमिक ट्रेन दो दिन की बजाय नौ दिनों में अपने गंतव्य पर पहुंचती है और ऐसी यात्राओं में कई श्रमिक अपनी जान गंवा देते हैं, तो इसको यात्रा नहीं, यातना ही कहा जाएगा। फिर भी मंत्री गण ऐसा भाव बनाते हैं, मानो उनकी सरकार के कारण ही रेल चल रही है, वरना नहीं चलती। लॉक डाउन से पहले जहां हजारों ट्रेनें चलने के बाद भी किसी ट्रेन के अपने गंतव्य से भटकने का समाचार नहीं आया, वहीं अब कई ट्रेनें गलत जगहों पर पहुंच रही हैं। इससे भयानक अराजकता भला और क्या होगी?

बनाना होगा दबाव

पूरे विश्व में चीन अपनी गुप्त रणनीति, गहरी साजिश और योजनाओं के लिए जाना जाता है। कभी वह कोरोना वायरस को एक जैविक हथियार के रूप में प्रयोग करता है, तो कभी सीमा-विवाद को बढ़ाकर पड़ोसी देशों पर दबाव बनाता है। कोरोना आपातकाल के इस दौर में भी वह लद्दाख, नेपाल, ताईवान, हांगकांग या भारत की सीमा में घुसपैठ करके अपना वर्चस्व बनाना चाहता है। वह यह जताना चाहता है कि उसकी सीमाओं का कोई अंत नहीं है। अपनी आर्थिक ताकत बढ़ाने के लिए ही उसने कोरोना वायरस को जन्म दिया, ताकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं चौपट हो जाएं और उसका साम्राज्य बन जाए। निश्चित रूप से चीन दुनिया के साथ कॉकटेल गेम खेल रहा है, जिसे तभी रोका जा सकता है, जब पूरी दुनिया एकजुट होकर उस पर दबाव बनाएगी। पूरे विश्व को चीन से सजग रहना होगा।

चीन की सीनाजोरी

चीन बदमाशी कर रहा है। पूरी दुनिया को कोरोना संकट में डालने के बाद भी वह आंखें तरेर रहा है। अपने ऊपर लगे आरोपों से वह नाखुश है। चीन के विदेश मंत्री का तो यह भी कहना है कि मुआवजे की मांग करने वाले देश दिवास्वप्न देख रहे हैं, अर्थात चीन का दुस्साहस इस कदर बढ़ गया है कि वह माफी मांगने की बजाय दूसरे देशों को धमका रहा है। सच यही है कि चीन ने कोरोना वायरस के बारे में दुनिया को बताना उचित नहीं समझा, जिसके कारण इसका फैलाव तेजी से हुआ। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा अमेरिका में हुआ है, जहां एक लाख से अधिक लोग इसका शिकार बन चुके हैं। फिर भी, चीन की ऐठन कम नहीं हुई है। दुखद यह भी है कि डब्ल्यूएचओ परोक्ष रूप से उसी का बचाव कर रहा है।

पाकिस्तान की करतूत

कोरोना महामारी के बीच भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। जम्मू कश्मीर के कठुआ इलाके में इंडियन पाकिस्तान बॉडर के पास पाकिस्तानी प्रशिक्षित कबूतर पाया गया है। दरअसल‚ इस कबूतर के पैर में कोडिंग वाली रिंग मिली है व रिंग में कुछ संदिग्ध नंबर लिखे पाए गए हैं और कबूतर के पंखों पर लाल रंग के निशान हैं। इससे इस कबूतर को जासूस कबूतर माना जा रहा है। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि जब पाकिस्तान ने गैर कानूनी तरीके से किसी चीज के जरिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारत की जासूसी करने की कोशिश की है। इससे पहले भी पाकिस्तान गुब्बारे‚ ड्रोन इत्यादि का इस्तेमाल जासूसी के लिए कर चुका है। 

अनर्गल बयानबाजी

देश पहले ही कोरोना संक्रमण काल से जूझ रहा है और इस महामारी से मुक्त होने के कारगर कदम उठाने को प्रयासरत है परंतु इस संकटकालीन विपदा में भी राजनीतिक दल अनर्गल बयानबाजी और सियासत करने में पीछे नहीं और वाकया यह है कि समाचार पत्रों से ज्ञात समाचार के आधार पर कि लॉकडाउन के पीछे मोदी का लIय विफल। यह बयानबाजी राहुल गांधी की है जो अखबारों में सुÌखयों में है। अब विपक्षियों को मोदी जी के जनहित ओर राष्ट्रहित के निर्णयों की बदहजमी हो रही है और ऐसी अनर्गल उल्टियां करते नजर आ रहे हैं। 

बहाल हों अनिवार्य सेवाएं

लॉकडाउन के बाद पूरे देश की आÌथक स्थिति चरमरा गई है। छोटे उद्योग–धंधे वाले‚ छोटे पूंजीपति वर्ग‚ कारीगरों के लिए सरकार ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाया है। सिर्फ राशन दुकान और फल–सब्जी विक्रेता को छूट दी गई है। क्या दूसरे व्यवसाय करने वाले लोग ‘हवा' पीकर रहते हैंॽ इन लोगों की जमा पूंजी खत्म हो गई है। भूखों मरने और सड़कों पर आने की नौबत आ गई है। मजदूर‚ राजमिस्त्री‚ ऑटो पार्ट्स के दुकानदार‚ वाहन चालक जैसे लोगों का जीवन मुश्किल में है। अब तक के परिणाम से जब तय हो गया है कि लॉकडाउन कोविड–१९ का कोई इलाज‚ हल नहीं है‚ तो सामाजिक दूरी तय कर के सुरक्षा के नियमों के तहत सरकार को अनिवार्य सेवाएं बहाल कर देनी चाहिए। 

चीन की हरकत

जहां एक तरफ आज जब सारी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से जूझ रही है‚ वहीं हमारे देश के नापाक पड़ोसी देशों को शरारत करने की सूझ रही है‚ जो बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है। हमारे देश के साथ लगती सीमाओं पर समय–समय पर चीन अपनी हरकतों से साबित कर देता है कि इसके दिल में चोर है और यह हमारे देश के साथ दोस्ती कि आड़ में दुश्मनी भी खूब निभाता है। हमारा देश चीन को आÌथक रूप से कमजोर करने के लिए अपने यहां चीनी बाजार का वर्चस्व कम करे और कोरोना के कारण इसकी बिगड़ी छवि का फायदा उठाते हुए वहां स्थापित कंपनियों को का न्यौता दे तो इसकी अक्ल ठिकाने आ जाएगी‚ सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी। 

भरोसा जगाना जरूरी

मूलभूत आवश्यकताओं के पूरा ना होने के कारण मजदूरों का जमावड़ा शहरों से गांव की तरफ जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मजदूरों के लिए शहरों में दोबारा रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगेॽ देश के हालात फिलहाल खराब ही हैं और परिस्थितियां बद–से–बदतर होती जा रही है। ऐसे में रोजगार की अपेक्षा करना असंभव सा लगता है। सरकार को परिस्थितियों को काबू में करने के लिए बड़े कदम उठाने की आवश्यकता है और हताश लोगों के मन में बेहतर होने का भरोसा जगाना है।

सतर्क रहें

इस समय हर किसी को मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता की जरूरत है। शरीर के पोषण के लिए हमें खाद्य पदार्थों की प्रतिदिन आवश्यकता होती है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रोटीन‚ वसा‚ कार्बोहाइड्रेट‚ विटामिन तथा खनिज लवण आदि की पर्याप्त मात्रा को आहार में शामिल करना आवश्यक है तथा ये सभी पोषक तत्व संतुलित आहार से ही प्राप्त किए जा सकते हैं। यह तभी संभव है‚ जब बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्री‚ दालें‚ अनाज‚ दुग्ध उत्पाद‚ मसाले‚ तेल इत्यादि मिलावटरहित हों। मिलावटी पदार्थों से बचने और अपमिश्रण की पहचान के लिए प्रशासन के साथ–साथ हमें भी जागरूक होने की जरूरत है। कोरोना काल में वैसे भी हमें ज्यादा जागरूक बनने की जरूरत है।

नेहरू को श्रद्धांजलि

देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले‚ आधुनिक भारत के शिल्पकार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित जवाहरलाल नेहरू की आज पुण्यतिथि है‚ आज हम इस महान हस्ती के बारे में कुछ जानने का प्रयास करते हैं। नेहरू एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के साथ–साथ आकर्षक व्यक्तित्व के धनी‚ ओजस्वी वक्ता‚ उत्कृष्ट लेखक‚ इतिहासकार‚ आधुनिक भारत का सपना देखने वाले महान स्वप्नoष्टा थे। सबसे महवपूर्ण बात यह है कि देश में आधुनिक भारत के शिल्पकार के खिताब से नवाजे जाने का श्रेय अगर किसी एक व्यक्ति को जाता है तो वो निःसंदेह पंडित जवाहरलाल नेहरू को ही जाता है। नेहरू ने अपने जीवनकाल में जो काम किए थे‚ आज उसी की नींव पर बुलंद व सशक्त भारत की नई तस्वीर रची जा रही है।

क्या है मकसदॽ

अब नांदेड में संत और उनके सेवादार की लोमहर्षक हत्या। पालघर से लेकर नांदेडÃ तक जारी हत्या की श्रृंखलाओं में कई संत अपनी जान गंवा चुके हैं। पंजाब में भी संत योगेश्वर की हत्या हुई‚ होशियारपुर में संत पुष्पिंदर महाराज पर जानलेवा हमला हुआ‚ उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में दो साधुओं की हत्या हुई। निहत्थे संतों की हत्या की घटनाएं रुûक क्यों नहीं रही हैंॽ केंद्र और राज्य सरकारें निहत्थे संतों की हत्या रोकने के लिए गंभीर क्यों नहीं हैंॽ क्या यह सिर्फ क्षणिक अपराध का प्रश्न है या फिर साधुओं की हत्या के पीछे कोई साजिश हैॽ क्या यह अंधविश्वास का प्रश्न है या फिर कोई विश्वास के साथ संगठित अपराध का मसला हैॽ

एक मुश्किल डगर

कहने और सुनने में स्वदेशी और आत्मनिर्भरता बहुत अच्छे शब्द लगते हैं, मगर इनकी डगर बहुत कठिन है। वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था में तो यह शायद ही संभव है। यह सही है कि स्वदेशी उत्पादों के इस्तेमाल से ही आत्मनिर्भर बना जा सकता है, क्योंकि ये एक-दूसरे के पूरक हैं, लेकिन इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। सर्वप्रथम जनसंख्या नियंत्रण का प्रयास करना होगा। उसके बाद प्राकृतिक संसाधनों के विकास और संरक्षण की व्यवस्था करनी होगी। निजीकरण को भी समाप्त करना होगा। जाहिर है, इसके लिए जरूरी नीयत और नीति का अपने यहां अभाव है। जनवादी नीतियां और ठोस प्रोग्राम न होने से ही सरकार शानदार काम करने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में बेचने पर आमादा है। ऐसे में, स्वदेशी और आत्मनिर्भरता कतई नहीं आ सकतीं।

विद्यार्थियों की दुविधा

कोरोना संकट काल में जहां एक ओर देश भर में डिजिटल शिक्षा का चलन बढ़ा है, तो वहीं दूसरी ओर सरकारी विद्यालयों में पढ़ रहे उन विद्यार्थियों के लिए दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है, जिनके पास तकनीकी साधनों का अभाव है। भले ही सरकारी विद्यालयों में भी अब ऑनलाइन शिक्षा शुरू हो गई है, लेकिन यहां ऐसे विद्यार्थी बड़ी संख्या में पढ़ते हैं, जिनके परिजन अभी दो जून की रोटी के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। इसीलिए कुछ विद्यार्थी अपने गांव की ओर लौट चुके हैं। जाहिर है, सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हर बच्चे के पास स्मार्टफोन और नियमित डाटा पैक का होना व्यावहारिक सोच नहीं है। इस कारण वे पढ़ाई से दूर हो रहे हैं, जिससे उनके मानसिक विकास में रुकावट पैदा हो रही है। इससे बच्चे गैर-उत्पादक कामों में भी शामिल हो रहे हैं, जो उन्हें भटकाव और दिशाहीनता की ओर ले जाएगा। इन बच्चों के लिए जल्द से जल्द जरूरी व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।

ऐसा हो लोकतंत्र

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए ऐसी सरकार की अपेक्षा होती है, जो सशक्त होकर राष्ट्रहित में कठोर निर्णय ले सके। इसके साथ ही एक मजबूत विपक्ष भी होना चाहिए, जो सत्तारूढ़ दल के अच्छे कार्यों का समर्थन और उसके जन-विरोधी कामों का विरोध करके सरकार की निरंकुशता को रोक सके। लिहाजा अपने देश का यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि यहां नेता प्रतिपक्ष का पद इसलिए खाली है, क्योंकि कोई विपक्षी दल इतनी सीटेें नहीं जीत सका कि इस पद पर अपने नेता को बैठा सके। इसलिए स्वस्थ लोकतंत्र के लिए सभी विपक्षी दलों को चाहिए कि वे एकजुट होकर खुद को एक राष्ट्रीय दल के रूप में विकसित करें और देशहित में अपनी पृथक अस्मिता समाप्त करके एक नए युग की शुरुआत करें।

नई भूमिका में राहुल

भले ही राजनीति में राहुल गांधी कम अनुभवी माने जाते हों और आए दिन अन्य राजनीतिक दल उनके बयान का अनर्थ निकालकर उनका मजाक उड़ाते हों, मगर कोरोना के खतरे को लेकर उनका कहना काफी हद तक सही साबित हुआ है। जब देश में महामारी के मामले बढ़ रहे थे, तभी राहुल गांधी ने प्रतिदिन जांच का दायरा एक लाख किए जाने की बात कही थी, जबकि उस समय चालीस हजार के आसपास जांच हो रही थी। इसके अलावा, उन्होंने मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए व्यवस्था किए जाने का भी सुझाव दिया, लेकिन राजनीतिक दांव-पेच के चलते उनकी दलीलों को अनसुना कर दिया गया। मगर आज सरकार खुद मजदूरों को गंतव्य तक पहुंचाने का काम कर रही है। यह देखकर लगता है कि यदि उनकी बातों पर गौर किया जाता, तो परिस्थितियां आज कुछ और होतीं।

सोमवार, 25 मई 2020

लोक डाउन की मजदूरों की मैराथन

देश के करोड़ों गरीब मजदूरों ने हजार किलोमीटर से ऊपर भी पैदल चल कर अपने घर पहुंच कर सरकार को यह बता दिया अगली बार सारे राष्ट्रीय खेलों के मैराथन पुरस्कार और इन पुरस्कारों के साथ दी जाने वाली  आर्थिक राशि इन लॉकडाउन के समय पर यात्रा करके अपने घर पहुंचे मजदूरों को ही मिलना चाहिए और मंदी की स्थिति में इन खेलों पर साल दो साल का ना आयोजित किए जाने का सख्त निर्णय लेना चाहिए, जिससे कि इन मजदूरों की आर्थिक हालात थोड़े सुधर सके।

बुधवार, 20 मई 2020

लॉकडाउन के पर यात्रा

Shakti Anand Kanaujiya
Shakti Anand Kanaujiya
देश के करोड़ों ग़रीब मज़दूरों ने हजार किलोमीटर से ऊपर भी पैदल चल कर अपने घर पहुंच कर सरकार को यह बता दिया चौथी बार सारे राष्ट्रीय खेलों के मैराथन पुरस्कार और इन पुरस्कारों के साथ दी जाने वाली आर्थिक राशि इन लॉक डाउन के पर यात्रा करके घर पहुंचे मज़दूरों को ही मिलना चाहिए। और मंदी की स्थिति में इन खेलों पर साल दो साल का ना आयोजित किए जाने का निर्णय लेना चाहिए, जिससे कि आर्थिक हालात थोड़े सुधर सके।

मंगलवार, 12 मई 2020

अगली पीढ़ी के लिए

कोरोना वायरस जब मनुष्य का जीवन निगल रहा है, तब पर्यावरण को एक नया जीवन मिल रहा है। पर्यावरण को सुधारने में हम दशकों से लगे हुए हैं, लेकिन इसमें कोई बड़ी सफलता हमें अब तक नहीं मिल पाई थी। मगर अब एक महामारी ने पूरी तस्वीर बदल दी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण 70 लाख से अधिक लोगों की जान जाती है। इतना ही नहीं, वायरस भी परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से खराब पर्यावरण की ही देन हैं। ऐसे में, यह देखना दिलचस्प है कि हम कब तक पर्यावरण को इस तरह साफ रख पाते हैं? अब यह एक एक इंसान के आगे साफ हो गया है कि जीवित रहने के लिए हमें स्वच्छ पर्यावरण की ही जरूरत है। अपनी नहीं, तो कम से कम अगली पीढ़ी के बारे में हमें सोचना ही चाहिए।

नीति क्यों

विगत 20 अप्रैल को बिहार के सिर्फ पांच जिले कोरोना-संक्रमित थे, लेकिन आज कमोबेश पूरा बिहार इससे संक्रमित हो चुका है। कुछ यही स्थिति पूरे देश की है। माना कि आज टेस्ट ज्यादा हो रहे हैं, मगर ध्यान देने वाली बात यह है कि 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कहा था कि जो जहां है, वह वहीं रहे। ऐसे में, आखिर क्या वजह है कि अब लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाकर संक्रमण बढ़ाने का जोखिम लिया जा रहा है। क्या भारत से कोरोना खत्म हो गया है? जब देशवासी कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए इतने दिनों से कष्ट उठा रहे थे, तो इन लोगों को कुछ दिन और रोकने में दिक्कत क्या थी? मजदूरों की घर वापसी कई अन्य तरह की समस्याओं को जन्म देगी। जिन राज्यों में ये लौट रहे हैं, वहां इन्हें काम मिलना कठिन है, क्योंकि रोजगार की तलाश में ही तो वे प्रवासी बने थे। और फिर, जहां से वे लौट रहे हैं, वहां पर भी मानव संसाधन की कमी हो जाने से उद्योग-धंधों पर बुरा असर पडे़गा। साफ है, कोरोना नियंत्रण के लिए जांच के साथ-साथ राहत के उपाय को भी तेज करने की जरूरत है। सरकारों को मिलकर इस पर काम करना होगा।

इम्तिहान लेता वक्त

लॉकडाउन खुलने के बाद सबसे महत्वपूर्ण काम दैहिक दूरी को बनाए रखना है। जब हर तरह की सेवाएं शुरू हो जाएंगी, रेल-बसें आदि चलने लगेंगी, मॉल-सिनेमा घर खुल जाएंगे, कंपनी-फैक्टरियों में काम होने लगेगा, तो लोगों के बीच एक निश्चित दूरी बनाए रखना आसान काम नहीं होगा। सरकार को इसके बारे में सोचना चाहिए। हालांकि लोगों को भी संयम, धैर्य, जागरूकता और समझदारी का परिचय देना होगा। वर्ष 2020 के अंत तक इस महामारी के उन्मूलन की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में, यह पूरा ही वर्ष हमारा इम्तिहान लेने वाला है।

गंदी राजनीति से बचें

‘एकता में शक्ति' हम बचपन से पढ़ते आए हैं, और यह सत्य भी है। वर्तमान में भारत की स्थिति जैसी हो गई है, उसमें हम भारतवासियों को इसी कथन पर आगे बढ़ना चाहिए। इस बात की खुशी है कि सभी धर्मों के लोग एकजुट होकर प्रधानमंत्री के साथ मिलकर देश को कोरोना-मुक्त बनाने में जुटे हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो गंदी राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। केंद्र सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी राज्य सरकारों के साथ है, लेकिन कुछ राजनेता इस महामारी को राजनीतिक वेश-भूषा पहनाने में जुटे हुए हैं। केंद्र सरकार अगर राज्य सरकारों को विशेष सहायता देने के प्रयास कर रही है, तो संबंधित राज्य को राजनीति छोड़कर उसे स्वीकार करना चाहिए। वास्तविकता में यही भारतीयता का प्रतीक है। इसे हम जब तक अपने जीवन में नहीं उतार लेंगे, तब तक कोरोना के खिलाफ हमारे देश की लड़ाई आसान न होगी।
शुक्र मनाइए कि आप भारत जैसे देश में हैं. जहां संघर्ष भी भावनाओं के दम पर जीते जाते हैं. हर कोई एक-दूसरे को विश्वास दिलाता है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. हम उस जमी पर हैं जहां उम्मीदों की जमीं और आशाओं का आकाश है. 

क्या मज़दूर अब ग़ुलाम हो जाएंगे?

कई राज्यों ने मजदूरों से संबंधित कानूनों में बदलाव कर दिए हैं और मौजूदा कानूनों को कुछ महीनों से लेकर तीन-तीन साल तक के लिए सस्पेंड कर दिए गया है. क्या मजदूरों को भी कानून की सुरक्षा से बेदख़ल किया जा रहा है. एक ऐसे वक्त में जब उनके पास रोजगार नहीं है, पैसा नहीं है, अनाज नहीं है, और वो हजारों मील दूर पलायन करने के लिए मजबूर हुए हैं, क्या ऐसा किया जाना बेहद जरूरी था? मीडिया जब भी मजदूरों के कानूनों का कमजोर किया जाता है तो उसे सुधार कहता है. लेबर रिफॉर्म कहता है. इस मीडिया का बस चलता तो श्रम कल्याण मंत्रालय का नाम ही उद्योग कल्याण मंत्रालय रख देता. और देश में श्रम मंत्री की जरूरत को ही खत्म कर देता.

सोमवार, 11 मई 2020

सामूहिक प्रयास हों

केंद्र और राज्य सरकारों के सामने परीक्षा की यह वह घड़ी है, जब कोरोना संक्रमण से बचते हुए अर्थव्यवस्था को बचाने के प्रयास करने हैं। यह करीब-करीब स्पष्ट है कि कारोबारी गतिविधियों को गति देने के कुछ उपाय अब किए जाएंगे। इसलिए यह जरूरी है कि केंद्र और राज्य ज्यादा से ज्यादा फैसले मिलकर करें और उन पर अमल केंद्र सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप हो।

बेपरवाह व्यवस्था

महाराष्ट्र के औरंगाबाद की रेल पटरियों पर पीड़ादायक हादसे के बाद भी कोढ़ में खाज यह है कि बेजान और पत्थर दिल होती व्यवस्था अब भी कोई सबक नहीं सीख रही। केवल घड़ियाली आंसू बहाकर मातमपुर्सी की जा रही है। इस हादसे के बाद भी दिहाड़ी मजदूर सड़कों और रेलवे पटरियों के किनारे उठते-बैठते, भूखे-प्यासे, धक्के खाते आ-जा रहे हैं। संवेदनशून्य होती हमारी व्यवस्था की मानवीय संवेदनाएं आखिर कब जागेंगी? ऐसे हादसों से कोई सबक नहीं लेना अब व्यवस्था का खेल होता जा रहा है, क्योंकि उसकी नजरों में आम आदमी की कोई हैसियत ही नहीं है।

बदहाल अन्नदाता

जहां भारत में रोजाना कोरोना मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है और अर्थव्यवस्था नीचे गिरती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ हमारी अर्थव्यवस्था के आधार किसानों की हालत भी लगातार दयनीय होती जा रही है। पहले ही महामारी और पूर्ण बंदी ने सारा काम बिगाड़ रखा है, और अब बेवक्त की आंधी और बारिश ने बची कसर पूरी कर दी। पूर्ण बंदी की वजह से किसान अपनी फसल नहीं काट पा रहे, जबकि आंधी-पानी से फसल खेत में ही खराब हो रही है। पता नहीं, हमारे अन्नदाताओं की मुश्किलों का अंत कब होगा?

महाराष्ट्र की जंग

जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री को अपनी कुरसी बचाने के लिए धमकी देनी पडे़, तो ऐसे मुख्यमंत्री को मजबूत कतई नहीं कहा जाएगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ऐसे ही मुख्यमंत्री हैं। जिस तरह से महाराष्ट्र विधान परिषद के चुनाव के लिए महा विकास आघाडी में शामिल पार्टियों में घमासान मचा हुआ है, उससे तो यही लगता है कि उनमें समन्वय का घोर अभाव है। वैसे शिवसेना की धमकी के बाद उद्धव ठाकरे का राज्य विधान परिषद में जाना तय है, लेकिन जिस तरीके से कांग्रेस ने शिवसेना को परेशान कर दिया, उससे तो यही जाहिर होता है कि उनमें अच्छा तालमेल अब तक नहीं बन सका है।

जागरूकता है जरूरी

आज अमीर-गरीब, मजदूर-किसान, युवा-वृद्ध, सब कोरोना का दंश हर रोज झेल रहे हैं। इन्हें जीवन के लक्ष्य की नहीं, बस जीवन की छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने की चिंता इन दिनों लगी रहती है। मानो जीवन नीरस और उत्साहहीन हो गया है। मगर विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या लॉकडाउन का पालन करके और दैहिक दूरी बनाए रखकर ही इस महामारी को जीता जा सकता है? हमारी संस्कृति, जो युगों से ‘वसुधैव कुटुंबकम' का संदेश देती आ रही है, क्या इस महामारी के साथ उनका विलय हो जाएगा? हमारे त्योहार और उत्सव, जो जीवन में ऊर्जा का संचार करते हैं, उनके प्रति हमारा रवैया क्या इसी प्रकार उदासीन होता रहेगा? इन सभी सवालों के ऊपर विचार करने पर केवल एक समाधान नजर आता है कि हम सब एक-दूसरे का सहयोग करके सामाजिक सद्भाव और संवेदनाओं का आदर करते हुए जागरूक बनने के प्रयास करें, तभी इस महामारी को दूर भगाया जा सकता है।

रविवार, 10 मई 2020

इस साल तो अप्रेल महीने से ही नियमित अंतराल पर आंधी आ रही है और बरसात हो जा रही है। तापक्रम 38 डिग्री से ऊपर चढ़ ही नहीं रहा। उपर से कोरौनवा का भी भय व्याप्त है। अजब गजब समय है।


जान गंवाते मजदूर

#जान_गंवाते_मजदूर
शुक्रवार की सुबह रेल की पटरी पर सो गए प्रवासी #मजदूरों पर एक मालगाड़ी के गुजर जाने से कई मजदूरों की मौत हो गई। यह घटना बेहद दर्दनाक है। असल में, ये मजदूर #लॉकडाउन के कारण साधन के अभाव में रेल पटरियों से स्टेशन जा रहे थे। जैसा तय था, रेलवे ने संवेदना जताकर मामला खत्म कर दिया और सरकार ने शोक व्यक्त करके अपनी जिम्मेदारी निभा ली। मगर सवाल यह है कि जिन मजदूरों से देश के बडे़-बडे़ कारखाने चलते हैं, लॉकडाउन की इस विकट स्थिति में उनकी दशा इतनी खराब क्यों हो गई है? उनकी इस कदर #अनदेखी क्या उचित है?

मजदूरों से मजाक

खबर है कि रेलगाड़ी से आते प्रवासी मजदूरों से किराया वसूला गया। करीब डेढ़ महीने की जटिल वेदनाओं को सहने के बाद उन भूखे-प्यासे, दर-दर की ठोकर खाए मजदूरों की दशा बिल्कुल खराब हो चुकी होगी। जो थोड़े बहुत पैसे उनकी जेबों में रहे होंगे, वे भी इस बंदी में खत्म हो गए होंगे। मगर उनसे टिकट का किराया तो वसूला ही गया, पानी और भोजन का रुपया भी अलग से लिया गया। जब पूरे देश में जगह-जगह खाने के पैकेट विभिन्न सामाजिक लोगों या संगठनों द्वारा बांटे जा सकते हैं, तो क्या सरकार रेलगाड़ी में बैठे मजदूरों को खाना-पानी नहीं दे सकती थी? जिन मजदूरों के कठिन परिश्रम से देश को मजबूती मिलती है, जब उनके साथ ऐसा होगा, तो किसानों, छात्रों जैसे निम्न आय वर्गों का क्या होगा? सरकार ने दूसरे देशों से अपने नागरिक बुलाए, तो शायद ही उनसे किराया लिया, तो फिर मजदूरों के साथ ऐसा क्रूर मजाक क्यों?

बुधवार, 6 मई 2020

सोनभद्र के सभी प्राइवेट स्कूल तीन महीने की छात्रों की फीस माफ करे


विश्व महामारी कोरोना के चपेट से देश व प्रदेश संकट के दौर से गुजर रहा है. लोग लॉकडाउन का पालन कर अपना व देश की सुरक्षा करने में डटे हुए हैं सोनभद्र  जिले में एक भी कोरोना पीड़ित ना मिलने जिले में राहत की सांस ली है. ऐसे आपदा में एक दूसरे को सहयोग करके ही आगे बढ़ा जा सकता है लॉकडाउन के कारण पूरी तरह व्यापार में लगे लोग चाहे फुटकर विक्रेता, थोक विक्रेताओं, मध्यमवर्गीय उद्योग, कुटीर उधोग, सब्जी वाले, ठेले वाले, ऑटो, हेयर सैलून, अन्य छोटे कारखानों के श्रमिकों की हालत बद से बदतर हो रही है ऐसे में परिजनों के सामने प्राइवेट स्कूल का फ़ीस देना भी एक बड़ी समस्या है. लोगों के पास रोजगार ना होने के कारण आमदनी पूरी तरह शून्य हो गई है. ऐसे में सोनभद्र जिले के प्राइवेट स्कूलों के प्रबंधक व संचालकों से देशहित-लोकहित की भावना से अपने स्कूल के छात्रो का तीन महीनों की फीस मानवीय दृष्टि से माफ करने की कृपा करें. क्योंकि लोगों के सामने आर्थिक संकट है और ऐसे में स्वयं का जीवन-यापन करना भी एक मुश्किल कार्य बनता जा रहा है. ऐसे में प्राइवेट स्कूल संचालक तीन महीने की फीस माफ कर अभिवावकों को एक बड़ा सहयोग होगा. ऐसे विषम परिस्थिति में स्कूल की फीस माफ कराने में जिलाधिकारी सोनभद्र द्वारा जिले में स्थापित कंपनियों जैसे एनसीएल, एनटीपीसी, हिंडालको, जयप्रकाश सीमेंट फक्ट्री, खनन एवं अन्य कंपनियों से सामाजिक दायित्व के तहत मदद लेकर स्कूल के बच्चों की फीस माफ कराने में अपना सहयोग प्रदान कर जनहित में सहयोगी होगा.

रविवार, 3 मई 2020

प्रदेश सरकार युवाओं व कामगारों को दे प्रति माह की आर्थिक सहायता राशि

shakti anpara
जिले के बेरोजगार युवाओं व असंगठित क्षेत्र के कामगारों को प्रतिमाह आर्थिक सहायता राशि देने व साथ ही विधायक एवं सांसद भी अपनी निधि की सम्पूर्ण राशि जिले के इन गरीबों परिवारो पर अगर खर्च करें तो ज्यादा बेहतर व कारगर होता, आगामी 17 मई तक लाकडाउन जारी रहने के मद्देनजर इन बेरोजगार युवाओं व कामगारों के लिए यह मदद काफी उपयोगी साबित होगी, लाकडाउन में गंभीर स्थिति के चलते श्रमिकों का गरीबों के सामने अपना अस्तित्व बचाने का संकट आ खड़ा हुआ है रोजाना कमाने वाले इन लोगों को अब अपने परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है इस तरह की खबरें भी लगातार आ रही है कि प्रदेश के कई जिलों में कई ट्रक फल सब्जियां एवं रोजमर्रा की आवश्यक वस्तुएं सही प्रबंधन के अभाव में बर्बाद हो रही हैं और जिला प्रशासन इन्हें आम जनता तक पहुंचाने में नाकामयाब साबित हो रहा है इसके परिणाम स्वरूप एक तरफ जहा महंगाई में अप्रत्याशित बढ़ोतरी लगातार हो रही है वही प्रदेश के अति गरीब वर्ग, विशेषकर बेरोजगार युवाओं, खेतों में काम करने वाले मजदूरों, छोटे उद्योगों में काम करने वाले कर्मियों, छोटे किसान, मीडिया में कार्यरत कर्मचारियों, छोटे दुकानदारों, रिक्शा चालकों को बिना भेदभाव किए कम से कम ₹5000 की राशि प्रतिमाह आर्थिक सहायता देने के लिए तुरंत आवश्यक कदम उठाये जाने की आवश्यकता होनी चाहिए

पूरी दुनिया के लिए कोरोना एक बड़ा सबक है, इसके बाद हमें अच्छे विज्ञान की मांग और आपूर्ति को पर्याप्त निवेश करते हुए बढ़ाना है।


कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...