अगर कोरोना वायरस से फैली बीमारी को महामारियों का जत्था कह रही है‚ तो उसके कई स्पष्ट कारण हैं। कोविड–१९ से जूझना और इसका निदान खोजना एक बात है‚ लेकिन इसके कारण पूरी दुनिया में बेरोजगारी‚ गरीबी‚ पलायन और हिंसा–लूटपाट समेत जो अन्य महामारियां फैलने लगी हैं वे एक विशाल संकट की ओर इशारा कर रही हैं। संकट यह है कि बेरोजगारी और पलायन के साथ–साथ दुनिया भूख की महामारी की कगार पर पहुंच रही है और इससे भुखमरी के आंकड़े तेजी से बदल रहे हैं। ॥ यह कितनी बड़ी विपदा हो सकती है–इसका एक अनुमान संयुक्त राष्ट्र के वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने २१ अप्रैल‚ २०२० को हुई बैठक में लगाया गया था‚ जिसके मुताबिक दुनिया में साढ़े १३ करोड़ लोग भुखमरी की चपेट में आ सकते हैं। पर अब इन आंकड़ों के भी दोगुने से ज्यादा हो जाने का अनुमान है। सबसे ज्यादा चिंता भुखमरी को लेकर ही है क्योंकि खाद्यान्न और भोजन की जो सप्लाई चेन और वितरण की जो व्यवस्था है‚ वह लगभग तबाह हो गई है‚ जिससे जरूरतमंदों को खाना नहीं मिल पा रहा है। ॥ सवाल अनाज वितरण की उस सार्वजनिक व्यवस्था पीडीएस का भी है जिसका मकसद ऐसे ही उद्देश्यों की पूÌत करना है‚ लेकिन अनिगनत अनियमितताओं के कारण गरीबों को इसका उचित लाभ नहीं मिल पाता है। अतीत में झांकें तो भुखमरी फैलने के कई और कारण भी दिखाई देते हैं‚ लेकिन इस समय मोटे तौर पर इसकी दो ही बड़ी वजहें हैं। एक तो किसानों और आढ़तियों की तरफ से ही सप्लाई कम है क्योंकि मंडियों में उनकी उपज के खरीदार नहीं हैं। जो खरीदार हैं वे उपज के औने–पौने दाम लगा रहे हैं। दूसरी वजह यह है कि गरीबी और बेरोजगारी के कारण लोगों के हाथ में भोजन–खाद्यान्न खरीदने लायक पैसे भी नहीं बचे हैं। ऐसे में एकमात्र उम्मीद खाद्य सुरक्षा और भोजन की गारंटी से है‚ जिसका एक बेहतर सिस्टम ही कुछ मददगार हो सकता है। पर हमारे देश में सार्वजनिक खाद्यान्न वितरण के इस सिस्टम (पीडीएस) में हर स्तर पर इतनी खामियां हैं कि इससे भुखमरी में ज्यादा राहत मिलने की उम्मीद कम ही है। उल्लेखनीय है कि खाद्य और कृषि संगठन के सहयोग से संयुक्त राष्ट्र द्वारा ७ जून को मनाए जाने वाले ‘वर्ल्ड फूड सेफ्टी डे' के तहत जिन पांच लIयों को हासिल करने की उम्मीद इस संगठन ने की‚ उनमें पहला यही है कि दुनिया भर की सरकारें अपने सभी नागरिकों को लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित करें। ॥ आंकड़ों में देखें तो देश के सरकारी गोदामों में अनाज पर्याप्त मात्रा में है‚ लेकिन गरीबों में भुखमरी की नौबत इसलिए आ रही है क्योंकि उन्हें सरकारी कोटे से मिलने वाले राशन में गड़बडि़यां हो रही हैं। सरकार अगर कोरोना संकट के दौरान गरीबों और भूखों को खिलाने के लिए अनाज भंडार का उपयोग करने के स्थान पर उसे गोदामों में सड़ने दे‚ यह भी एक किस्म की आपदा है। एक अंदाजा है कि बीते चार महीनों में दश के सरकारी गोदामों में ६५ लाख टन अनाज सड़ गया। यह बताता है कि सरकार कोल्ड स्टोरेज के अभाव में लंबे समय तक अनाज को स्टोर करके नहीं रख पा रही है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के सरकारी गोदामों में अक्टूबर २०१८ के बाद से १ मई २०२० तक अनाज भंड़ारण में लगातार वृद्धि हुई है। नया गेहूं आने के बाद अब इन गोदामों में ८७८ लाख टन अनाज है‚ जिसमें ६६८ लाख टन अनाज सरप्लस में है। सरकारी गोदाम अनाज से अटे पड़े हैं और गरीबों के सामने भूखों मरने की नौबत हो‚ तो सवाल पैदा होता है कि क्या सरकार के पास गरीबों को राशन देने की कोई योजना नहीं है। ॥ कहने को सरकार ने हाल में पहली जून‚ २०२० से ‘एक देश‚ एक राशन कार्ड‘ योजना को लागू कर देश के ६७ करोड़ गरीबों को किफायती कीमत में राशन पहुंचाने की व्यवस्था कर दी है‚ लेकिन इसका फायदा पीडीएस के तहत राशन की जिन दुकानों से मिलना है‚ वे हमेशा सवालों घेरे में रही हैं। सरकार कह रही है कि इस योजना के तहत पीडीएस के लाभाÌथयों की पहचान उनके आधार कार्ड पर इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल से की जाएगी। लेकिन अभी तो राशन की ये दुकानें घपलेबाजी के लिए ही जानी जाती हैं। यह हाल की ही सूचना है कि बिहार में अनियमितता करने वाली ऐसी ही ८०० राशन की दुकानों को सील किया गया था और २५९ दुकानों पर केस दर्ज किया गया था। छुटभैये नेताओं की शह पर गड़बड़ी करने वाले राशन डीलरों से लेकर सरकारी गोदामों में अनाज की बर्बादी तक पूरे सिस्टम को ओवरहाल किए बगैर भुखमरी से निपटने का संकल्प जताना हवाई दावे करने जैसा है–यह बात हमारे नेताओं और सरकारी नुमांइदों को समझनी होगी॥
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