बुधवार, 24 जून 2020

सफाई न होने से गलियों में जलजमाव

मानसून से पहले नगर पालिका परिषद प्रशासन की तैयारियां अधूरी हैं। शहर में नाले-नालियों की हालत देख कर इसका अंदाजा साफ तौर पर लगाया जा सकता है कि मानसून पूर्व तैयारियों को लेकर प्रशासन संजीदगी नहीं बरत रहा। इससे आने वाले दिनों में जनता की मुश्किलें और बढ़ेंगी। फिलहाल अधिकांश नालियां गंदगी से पटी पड़ी हैं। बजबजाती नालियों की दुर्गंध से लोगों का जीना मुहाल हो गया है। वहीं कटहल नाले में भी जगह-जगह गंदगी का अंबार लगा है और पानी जाम हो गया है। अगर समय रहते प्रशासन नहीं जागता है तो लोगों को जलनिकासी की समस्या से सामना करना पड़ेगा।- बच्चू जी, स्टेशन रोड, बलिया।परीक्षाफल से बच्चों का आकलन न करें27 जून को माध्यमिक शिक्षा परिषद के वर्ष 2020 के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के परीक्षा परिणाम की बाबत विद्यार्थियों के प्रति स्थायी विचार न बनाएं क्योंकि इस वर्ष आने वाला परीक्षाफल कई सारी बाधाएं और विसंगतियों के बाद आ रहा है। कोरोनाकाल में बोर्ड परीक्षा के उत्तरपुस्तिकाओं के मूल्यांकन में आने वाली रुकावटों के बाद यह रिजल्ट आ रहा है। यूपी बोर्ड ने बच्चों के हितों को ध्यान में रखकर उन्हें आगामी कक्षा की तैयारी के लिए निर्णायक समय में उन्हें परीक्षाफल दे रहा है। जिससे हो सकता है कि इस आपाधापी में कापियों का सही आकलन और मूल्यांकन नहीं हो पाया हो। परीक्षाफल से बच्चों का आकलन नहीं करना चाहिए।

लोकतंत्र की हत्याए.

आज के ही दिन 25 जून, 1975 को भारत के महान लोकतंत्र की हत्या हुई थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सत्ता के लिए देश के लोकतंत्र का गला घोंटने में संकोच नहीं किया था। देश ने लगातार 21 महीने तक इंदिरा शासन की तानाशाही को बर्दाश्त किया था। संजय गांधी और उनके सलाहकार आरके धवन की चौकड़ी ने कैबिनेट और अन्य संवैधानिक संस्थाओं को धता बताकर देश के शासन का संचालन सूत्र अपने हाथों में ले लिया था। एक अनजाने भय के वशीभूत होकर इंदिरा सरकार ने संघ के सभी आयु वर्ग के स्वयं सेवकों के साथ जो क्रूरतम व्यवहार किया, उसको विस्मृत नहीं किया जा सकता। यह अत्याचार कांग्रेस के लिए इतना घातक सिद्ध हुआ कि 1977 के आम चुनाव में देश की आम जनता ने इंदिरा गांधी को सत्ताच्युत कर दिया। यद्यपि विपक्षी दलों के घालमेल से बनी जनता दल सरकार भी बहुत दिनों तक स्थिर नहीं रह पाई। जिसके परिणामस्वरूप अगले लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने सब कुछ भुलाकर इंदिरा गांधी के हाथों में फिर से देश की बागडोर सौंप दी। राजनीति में इस तरह का विस्मरण संभव है, लेकिन सामान्य जन-जीवन में आपातकाल के काले अध्याय को भुला पाना संभव नहीं है, क्योंकि लोकतंत्र की रक्षा के लिए यह किसी सबक से कम नहीं है।

बारिश ने खोली पोल

दो दिन की बारिश ने नगर पालिका के सफाई व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है। शुरुआती बारिश के बाद नगर के गली-मोहल्ले की नालियां चोक हो गई हैं। इससे नगर पालिका की तरफ से कराए गए गुणवत्ता के कार्यों का पता लग रहा है। नगरवासी जाम नालियों से परेशान हैं। साफ-सफाई ठीक ढंग से होती तो इस तरह की समस्या का सामना न करना पड़ता। बरसात से पहले नगर पालिका को युद्ध स्तर पर सफाई अभियान चलाना चाहिए, जिससे इस समस्या से निजात मिल सके।

मनरेगा की जांच हो, खुलेगा राज

मनरेगा को लेकर जनपद में हर जगह चर्चा है। हालात तो यह है कि इसमें धन का बंदरबांट इस तरीके से किया जा रहा है जिसमें किसी को पकड़ना मुश्किल हो रहा है यानी नीचे से लेकर ऊपर तक लोग जुड़े हुए हैं। अगर इसकी पारदर्शी ढंग से जांच हो तो बड़ा खुलासा होगा। कई जगहों पर तो बिना काम कराये पैसा निकाल लिया गया है। श्रमिकों को नौकरी देने के नाम पर जमकर सरकारी धन से अपनी जेबें भरीं जा रही हैं। आने वाले दिनों में हो सकता है जगह-जगह आंदोलन भी शुरू हो। यही हालात टंका के मामले में भी है। इसे लेकर भी लोगों में आक्रोश उभरने लगा है। इस मामले में शासन स्तर से जांच कराने की जरूरत है।

बच्चों को दें अच्छे संस्कार

अभिभावक बच्चों पर उम्मीदों का बोझ लाद देते हैं जबकि बच्चों को अपने सपने पूरे करने देना चाहिए। अब बच्चों को लेकर माता-पिता में संजीदगी कम होती जा रही है। आजकल के व्यस्तता भरे जीवन में हर व्यक्ति के पास समय का अभाव है। ऐसे में लोग बच्चों पर भी उचित ध्यान नहीं दे पाते। उनकी गतिविधियों को नजरअंदाज करते हैं। इससे उनमें संस्कार कम होते जा रहे हैं। जिन बच्चों को उम्मीद से ज्यादा आजादी दी जाती है, वे अक्सर परिजनों के साथ-साथ समाज को भी शर्मसार कर देते हैं। आज बच्चे अपने दादा-दादी, नाना-नानी के पास बैठना पसंद नहीं करते हैं जबकि बड़े-बुजुर्गों से ही बच्चों को संस्कार प्राप्त होते हैं। सभी माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें ताकि समाज में नाम रोशन कर सकें।

AGHORI KILA

राबर्टसगंज से 25 कि0 मी0 दक्षिण चोपन से 7 कि0 मी0 पश्चिम स्थित यह किला तीन नदियों रेणु विजूल तथा सोन के बीच स्थित है । इस किले में कहावत के अनुसार बहुत सम्पदा है एवं यह भी तिलस्मी किला है । मोलागत राजा से लोरिक का युध्द यंही पर हुआ था । इस किले में देवी दुर्गा की कलात्मक मूर्ति आंगन के द्वार पर है । यंहा पर एक कुंआ है जो बहुत गहरा है सोन नदी से इसका सन्बंध बताया जाता है । आगे राजा की कचहरी है फिर परकोटा है जंहा से दरवाजा है । नीचे एक बड़ा हाल है जंहा हजारो लोग निवास कर सकते हैं । यंहा भी दुर्गा जी की एक कलात्मक मूर्ति स्थापित है । यंहा पर देवी की पूजा करने लोग दूर दूर से आतें हैं । दुर्ग को चारो ओर से नाले तथा खाई से सुरक्षित किया गया है । इस दुर्ग पर खरवारों का अधिपत्य था जिसे बाद में चंदेलों ने अपने अधीन कर लिया था । दुर्ग से निकलने पर एक गेरूआ पहाड़ दिखता है लोग कहते हैं कि इस पहाड़ पर लाखों वीरों की तलवार की धार उतारी गई थी । सोननदी की धारा में एक हाथी की शक्ल का पत्थर है इसे लोग मोलागत राजा का कर्मामेल हाथी बताते है जो लोरिक द्वारा मारा गया था। इस दुर्ग तक चोपन से नाव द्वारा पहुंचा जा सकता है।

VIJAYGARH KILA

यह किला राबर्टसगंज से लगभग 28 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में सोन नदी के तट पर स्थित है । राबर्टसगंज से 15 कि0 मी0 पूर्व दक्षिण चतरा गांव से एक सड़क धनरौल बांध तक जाती है जंहा से मऊ गांव तक जो चतरा से करीब 10 15 कि0 मी0 होगा जीप द्वारा कभी भी जाया जा सकता है बरसात के बाद किले तक पहुंचने के लिये जंगल विभाग द्वारा कच्ची सड़क का निर्माण हो जाता है । इस दुर्ग का निर्माण पॉंचवी शताब्दी में कोल राजाओं द्वारा कराया गया था । इस किले में लगभग 12 बड़े बड़े कक्ष और चार तालाब ऐसे हैं जिनका जल कभी समाप्त नहीं होता है । इस दुर्ग के शिलालेख गुहाचित्र एवं कलात्मक मूर्तियां अत्यन्त दर्शनीय हैं । गंगा की तलहटी से करीब 400 फीट ऊंचाई पर बना यह किला काशी नरेश राजा चेत सिंह के अधिपत्य में अंग्रजो के आने के समय तक रहा है । यह किला चरो तरफ से दीवार से घिरा हुआ है जिस पर तोपची निशान लगाये बैठे रहते होंगे ।किले के मुख्यद्वार को सीढ़ियों से नीचे से जोड़ा गया था जो अब टूट चुकी है । कहते हैं कि यह तिलस्मी किला है तथा इसके नीचे भी एक किला छिपा है ऐसा देखने से प्रतीत होता है । मुख्य द्वार से आगे बढ़ने पर रानी का महल है । रानी के महल में पत्थर की कलात्मक कलाकारी की गयी है । अन्दर कमरे तथा बरामदे बने हुये हैं जो अब गिर रहे हैं । इस किले पर अप्रेल के महीनें में हर वर्ष एक उर्स का आयोजन होता है जिसमें लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं । यह उर्स सुप्रसिद्व सैयद हजरत मीरान शाह बाबा की मजार पर आयोजित होता है । मजार के चारो ओर अब दीवार बनाई जा रही है जिसमें चुने दो पत्थरो को देखने से पता चल्ता है कि वंहा एक शिला पर कुछ लिखा हुआ है जो हिन्दु परम्परा तथा धर्म से सम्बंधित है । इस मकबरे के पास एक बड़ा तालाब है जिसका पानी साफ है । आगे चलकर रामसागर तालाब है । इसके साथ ही राजा का महल है । खिड़की का दरवाजा बन्द कर दिया गया था जिसे फिर खोल कर उधर से चढ़ने उतरने का रास्ता बनाया गया है रास्ते में एक गणेश की दाहिने सूड़ की प्रतिमा है।

HANTHI NALA

यह राबर्टसगंज से करीब 60 कि0 मी0 पर दक्षिण पूर्व में दुध्दी के मार्ग पर अंग्रजो के द्वारा निर्मित कृत्रिम प्रपात है । यंहा पर ठहरने के लिये हट भी निर्मित है जिसका उपयोग पर्यटको के लिये किया जा सकता है । इससे करीब 35 कि0 मी0 पर म्योरपुर के पास नदी में भी एक प्रपात है जो देखने योग्य है।

MUKKHA DARI

जनपद में सबसे सुन्दर जल प्रपात मुखा दरी है जो शिवद्वार से करीब 8 कि0 मी0 पश्चिम में बेलन नदी पर स्थित है । बीच रास्ते पर कड़िया ताल है जिसे विकसित कर झील का रूप दिया जा रहा है जंहा नौका विहार एवं होटल पर्यटक दृष्टि से प्रभावी होगा । मुखा दरी की गुफाओं में बहुत से शैलाश्रित गुहा चित्र हैं जो प्राचीनतम एवं बहुमूल्य हैं । यंही देवी की प्रतिमा तथा मन्दिर है।

GARAGJAWA

राबर्ट्सगंज पिपरी मार्ग पर सलखन नामक स्थान पर मुख्य मार्ग से 1 कि0 मी0 पश्चिम गरगजवा पहाड़ी है । यंहा पर पेड़ के कटे तनो की आकृति की चट्टाने अभी हाल में पायी गयी हैं । इसके विषय में कहा जाता है कि यह पेड़ के कटे तने लगभग डेड़ अरब वर्ष पुराने हैं जो कालांतर परत दर परत चढ़ने पर पत्थ की आकृति में परिवर्तित हो गये।

OBRA GUPHA

ओबरा में पानी हेतु टंकी तथा पाईप लाइन बिछाने का कार्य चलते समय ये गुफायें मिली । वैसे तो तीन गुफायें स्पष्ट दिखाई देती है परन्तु प्रमुख गुफा करीब 20 फिट गहरी 10 फिट ऊंची तथा 20 फिट चौड़ी है ।

KANDAKOT

राबर्टसगंज से दक्षिण पश्चिम कोण पर लगभग 12 कि0 मी0 की दूरी पर यह दुर्ग स्थित है । इसके प्राचीर अब ध्वंसाावशेष हैं । यंहा पर कण्डेश्वर महादेव का मन्दिर तथा कई गुफायें हैं जंहा पर शैलाश्रित गुहाचित्र देखे जा सकतें हैं । दुर्ग के चारो ओर खाई तथा हरे जंगल हैत्त्। शिवरात्रि एवं बसंत पर यंहा मेला लगता है । यंहा से 2 कि0 मी0 पर कुंडारी देवै का मन्दिर एवं गुफायें हैं ।

DUDHIYA NALA

एक प्राचीन मन्दिर मऊ गांव के आगे धनरौल बांध से करीब 4 कि0 मी0 पर स्थित है । इसका शिवलिंग करीब 15 से 2 फिट व्यास का 3 फिट ऊंचा है । इसी मन्दिर के साथ खुले में दो ओर शिवलिंग है जो एक ही मोटाई तथा ऊंचाई के हैं परन्तु एक पर सहस्त्रनाग प्रतिमायें बनी हैं । सहस्त्रनाग शिवलिंग का भग्नावशेष शिवद्वार में भी देखा गया है परन्तु वह करीब एक फिट का ही है । यंहा पर काले पत्थर की एक अष्टभुजी की प्रतिमा है।

SODHARIGARH DURG

यह दुर्ग बेलन नदी के तट पर स्थित है । राबर्टसगंज से लगभग 35 किलोमीटर दूर दक्षिण पश्चिम में तथा घोरावल से इसकी दूरी लगभग 8 किलोमीटर है । इस दुर्ग की सुरक्षा हेतु चारो तरफ गहरीं खाईया आज भी देखी जा सकती हैं । इसके भग्नावशेषों की खुदाई से अत्यन्त कलात्मक मूर्तियां मिली हैं जिसमें से कुछ खण्डित है जो शयद मुगल काल में तोड़ दी गयी होंगी । यंहा गहड़ूवाल राजाओं का कभी राज्य था।

मंगलवार, 23 जून 2020

संतोष से ही मानसिक शांति संभव


आज बड़ी संख्या में लोग मानसिक तनाव के साथ जी रहे हैं। इसका एक कारण है कि मनुष्य ने धन को ही सवरेपरि मान लिया है। जो जितना असंतुष्ट है वह उतना ही आधुनिक समझा जाने लगा है। जीवन अपनों से दूर हो गया है। फलस्वरूप तनाव स्वाभाविक है। यह जीवन में मुसीबतें ही लेकर आता है। याद रखें कि केवल संतोष से ही मानसिक शांति और सुख मिल सकता है।

कितनी कारगर है दवा

ब्रिटेन के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्हें एक ऐसा प्रमाण मिला है जिससे कोविड-19 मरीजों को बचाया जा सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि डेक्सामेथासोन नामक स्टेराइड के इस्तेमाल से गंभीर रूप से बीमार कोविड मरीजों की मृत्यु दर में एक तिहाई तक की कमी आई है। इस दवा के काफी उत्साहजनक नतीजे अभी तक मिल रहे हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि जल्द ही इस दवा को लेकर एक रिसर्च पेपर भी प्रकाशित किया जा सकता है। वैसे तो अध्ययन की इस उपलब्धि को सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, परंतु यह देखना अभी बाकी है कि यह अन्य लोगों पर यह कितनी कारगर साबित होगी।

गांव में ही रोजगार का सही कदम

लॉकडाउन के कारण पलायन करने वाले प्रवासी श्रमिकों को सरकार ने गांव में ही रोजगार देने का फैसला किया है, जो स्वागतयोग्य है। ऐसे कदमों से ही देश विकेंद्रीकरण की शानदार नीति से स्वदेशी और आत्मनिर्भरता की और तेजी से बढ़ सकता है। असल में गांव ही तो देश की प्रमुख इकाई है। आज देश में जनशक्ति और काम की कोई कमी नहीं है। कमी तो नीति और नीयत की ही है जिसे सही तरीके से सर्वहित में बनाने और लागू करने की जरूरत है।

चीन की नीयत में खोट

दो देशों के बीच में समझौते तभी सफल होते हैं जब दोनों उसका पालन करें। अगर एक भी देश इसका पालन नहीं करता है तो संधि का मकसद बेकार हो जाता है। यही समस्या भारत-चीन की सीमा पर है। एक दूसरे पर हथियार से हमला नहीं करने व सीमित संख्या में ही सैन्य बल तैनात करने की संधि के बावजूद चीन इसका उल्लंघन कर रहा है। इसका नतीजा खूनी संघर्ष के रूप में सामने आया। चीन अभी भी भारत की गलवन घाटी में तनाव पैदा करने में लगा हुआ है और अपनी गलती को नहीं मान रहा है। उसकी नीयत में खोट है। वह कभी भरोसे का देश नहीं रहा है। उसके साथ किसी भी तरह की वार्ता में बहुत सावधानी की जरूरत है।


चीन को आर्थिक नुकसान का झटका दें

जब-जब भी हमारे देश का चीन के साथ तनाव बढ़ता है, तब-तब इसके सामान के बहिष्कार का जुनून भी देश में बढ़ता है, लेकिन यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि हमारे देश की सरकार चीन से आर्थिक लड़ाई खुलकर नहीं लड़ सकती और न ही चीनी सामान पर पूर्ण प्रतिबंध आसानी से लगा सकती। ऐसा इसलिए, क्योंकि विदेशी व्यापार, आयात-निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ समझौते हुए होते हैं, जिनकी अवहेलना देश के लिए भारी पड़ सकती है। ऐसे में चीन से आर्थिक लड़ाई लड़ने में हमारे देश के नागरिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इसके लिए नागरिकों को चीनी सामान पर अपनी निर्भरता कम करनी होगी। अगर हमारा देश अनावश्यक चीनी सामान का प्रयोग करना भी छोड़ दे तो भी चीन को भारी आर्थिक नुकसान हो सकता है। इनमें मुख्यत: बच्चों के खिलौने, इलेक्ट्रॉनिक सामान, चीनी मोबाइल एप्लीकेशन आदि तो ऐसे हैं जिन्हें आसानी से तिलांजलि दी जा सकती है। इस पर अवश्य विचार किया जाए।

विक्रम और वीरता राष्ट्रीय चरित्र

चीनी सेना ने लद्दाख की गलवन घाटी में धोखे से भारतीय सैनिकों को जिस तरह निशाना बनाया उसके बाद चीन से रिश्ते सामान्य बने रहने का कोई औचित्य नहीं। ऐसा शायद चीनियों ने इसलिए किया कि आर्थिक व व्यापारिक मामलों में भारत को दबाव में लेने के साथ ही दुनिया का ध्यान कोरोना वायरस से उपजी महामारी से हटा सके। इस छल पर चीन को मुंहतोड़ जवाब देने का समय आ गया है। उसने भारत ही नहीं अमेरिका जैसे देशों को भी अपना शत्रु बना लिया है।

दुर्दशा पर आंसू बहा रहा क्षतिग्रस्त मार्ग

सरकारी संस्थाओं को भले ही हाईटेक संसाधनों से जोड़कर पारदर्शिता लाने का दावा किया जा रहा हो लेकिन, उनकी कार्यशैली में जमीनी तौर पर कितना बदलाव हुआ है इसका उदाहरण जिले की सबसे महत्वपूर्ण लोक निर्माण विभाग की तरफ से 40 किमी. लंबे राबट्र्सगंज-खलियारी संपर्क मार्ग को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। इस क्षतिग्रस्त मार्ग की दुर्दशा को लगातार फोकस करने के बाद भी प्रशासन की तरफ से ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सड़क की हाल यह हो गई कि बड़े-बड़े गड्ढ़े बन जाने से बारिश के बाद उसमें पानी भर जाने से लोग अक्सर दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। इसको लेकर लोग संबंधित विभाग के खिलाफ मोर्चा भी खोलने लगे हैं। बावजूद प्रशासन की तरफ से कोई पहल नहीं की जा रही है।

कैसे हो सुधार

कोरोना संक्रमण काल में विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्थाओं को कैसे संचालित किया जाए, इसको लेकर सोचने की जरूरत है। जुलाई आने वाला है। ऐसे में सरकार द्वारा शिक्षा के नए सत्र की शुरुआत की जाती है लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इस पर नीति नियंताओं को सोचने की जरूरत है। जिससे बचाव भी हो और शिक्षण कार्य भी न प्रभावित हो सके। शिक्षा बाधित होने से छात्रों की पढ़ाई में रूचि भी कम हो जाती है। संक्रमण को देखते हुए शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर लाने की जरूरत है।

सार्थक भूमिका निभाए विपक्ष राष्ट्रीय सुरक्षा

कोरोना काल हो या मौजूदा भारत-चीन संकट, उसमें कांग्रेस और उसके वरिष्ठ नेताओं ने बचकाने प्रश्न पूछकर बार-बार अपने अपरिपक्व रवैये का ही प्रदर्शन किया है। संभव है कि उन्हें यह संकटकाल राजनीतिक बढ़त का अवसर दिख रहा हो, लेकिन उन्हें इससे पहले राष्ट्रीय हितों पर भी विचार करना चाहिए। इस मामले में कांग्रेस अन्य दलों से सबक ले सकती है जिनमें से कई सरकार के बेहद तल्ख विरोधी हैं, लेकिन इस संकट में सरकार के साथ खड़े हैं। इसमें संदेह नहीं कि किसी भी गतिशील लोकतंत्र को एक सशक्त विपक्ष की भी उतनी ही दरकार होती है जितनी मजबूत सत्ता प्रतिष्ठान की। इसके लिए आवश्यक होगा कि मुख्य विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस अर्थपूर्ण सवाल उठाए। इससे न केवल वह अपनी भूमिका का सही से निर्वहन कर सकेगी, बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी। अफसोस की बात यही है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा जिसकी बानगी सर्वदलीय बैठक में देखने को मिली। वहीं ऐसा भी प्रतीत होता है कि वामदल इतिहास की भूलों से कोई सबक नहीं लेना चाहते। वे भी आग में घी डालने से पीछे नहीं रहे और 1962 वाला उनका चीनी प्रेम आखिर जगजाहिर हो ही गया। उन्हें स्मरण रखना चाहिए कि संकट के समय में ऐसी राजनीतिक विषमताएं शत्रु देश को संजीवनी देने का ही कार्य करती हैं।अमित दुबे, छिबरामऊ(कन्नौज)कार्बाइड का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए घातकप्रशासन के मनाही के बाद भी कई फलों को पकाने के लिए आज भी कार्बाइड का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। खासतौर पर इस समय आम पकाने के लिए तो इसका भरपूर प्रयोग किया जा रहा है। बाजार में बिकने वाले लगभग आम कार्बाइड से ही पकाए गए हैं। कार्बाइड एक खतरनाक केमिकल और इसका उपयोग शरीर को काफी नुकसान पहुंचाता है। इसके बाद भी फलों को पकाने में किए जा रहे इसे प्रयोग पर रोक नहीं लग पा रहा है। इस तरह की स्थिति में लगभग सभी लोग मीठा जहर के रूप में इसे शरीर के अंदर ले रहे हैं। कोरोना वायरस के समय यह और घातक हो जाता है।माया यादव, रामपुर महावल, बलिया।अब कस्बों और गांवों की ओर कोरोनामहानगरों से बड़ी संख्या में श्रमिकों की वापसी के बाद छोटे-छोटे नगरों व कस्बों में भी तेजी से कोराना वायरस का संक्रमण बढ़ने लगा है। लाकडाउन खुलने के बाद लोग वापस पुराने र्ढे की जीवनशैली पर तेजी से लौटने लगे हैं, जिसके साइड इफेक्ट भी कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या के रूप में दिखाई देने लगा है। कई माह के कारोबार की बंदी और बेरोजगारी से भी सबक लेने को लोग तैयार नहीं हैं। छोटे शहरों के लोगों को भी अब बेहद सतर्क और चौकन्ना रहना होगा। पुष्पा त्रिपाठी, हिकमा कोपागंज, मऊ।पेड़ों की रुके कटाईपर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। जंगलों को संरक्षित रखने की दिशा में कारगर प्रयास नहीं किए जाने से वृक्षों की अंधाधुंध कटाई जारी 

शनिवार, 20 जून 2020

राजनीतिक खून का असर

अमूमन यही देखा गया है कि बॉलीवुड से पॉलीवुड यानी सियासी पगडंडियों का सफर शुरू करने वाले राजनीति में अपनी मंजिल तक कम ही पहुंच पाते हैं। अपनी सीमित राजनीतिक सोच और कुशलता के अभाव में उनकी सियासी पारी अक्सर छोटी रह जाती है। केंद्र की राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने जब सिने वर्ल्ड छोड़कर संसद में प्रवेश किया तो यही माना गया कि यह तो पिता की राजनीतिक कमाई का फल है। हालांकि सही वक्त पर अपने पिता को भाजपा के साथ लाने, फिर सीटों के बंटवारे में हिस्सेदारी बरकरार रखने, बिहार चुनाव से पहले ‘युवा बिहारी’ के टाइटल के साथ पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर सरकार को ही घेरने और विपक्ष के हाथों से मुद्दा छीनने की जो रणनीति उन्होंने अपनाई, उसने दूसरे दलों के दिग्गज नेताओं को भी आकर्षित किया है। कहा जा रहा है यह राजनीतिक खून का असर है। अब इंतजार है आगामी बिहार चुनाव का। शायद यहीं से यह तय होगा कि चिराग अपने पिता की राजनीतिक विरासत को कितना विस्तार दे पाएंगे।


मजबूत मन को पलीता

भले ही कोरोना का कहर अभी थमने का नाम नहीं ले रहा, पर धीरे-धीरे लोग इस महामारी को लेकर अपना कलेजा मजबूत करने में जुट गए हैं। कोरोना का डर भगाने के लिए शायद मन को दृढ़ करने की यह सोच ही है कि सत्ता और नौकरशाही के शीर्ष गलियारों ने इससे मुकाबले का नया तरीका इजाद किया है। यह तरीका है कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर भी इसकी चर्चा बाहर न जाने पाए। सत्ता गलियारों में कुछ एक मंत्रियों और उनके स्टाफ तो किसी मंत्रलय में बड़े अफसरों के कोविड पॉजिटिव होने की कानाफूसी खूब है। ये सभी अस्पताल जाने के बजाय अपने घर में डॉक्टरों की देखरेख और सलाह के तहत सेहत लाभ कर रहे हैं। वहीं केंद्रीय गृह मंत्रलय के राजधानी दिल्ली में होम क्वारंटाइन की मौजूदा व्यवस्था को खत्म करने के आदेश पर कशमकश ने चुपचाप कोविड को मात देने की सत्ता के रसूखदारों की इस रणनीति को पलीता लगाने का पूरा इंतजाम कर दिया। सरकार का यह आदेश जाहिर तौर पर ऐसे मजबूत मन वालों के छिपे हुए रहस्य को उजागर कर सकता है।

वचरुअल सुनवाई

कोरोना काल में एकबारगी तेजी से फैले वचरुअल प्लेटफॉर्म ने बहुत कुछ आसान तो बना दिया, लेकिन कई बार असहज स्थिति भी पैदा होने लगी। सुप्रीम कोर्ट की वचरुअल सुनवाई के दौरान देश के जाने-माने वकील मुकुल रोहतगी बहस कर रहे थे। कैमरे पर दिखे तो उनके पीछे लगी बड़ी मूर्तियों को देखकर न्यायाधीश ने पूछ लिया- क्या आप म्यूजियम में हैं। वकील ने ङोंपते हुए कहा, ‘नहीं, माईलार्ड मै अपने फार्म हाउस में हूं। आजकल यहीं शिफ्ट हो गया हूं ताकि दोनों समय स्वीमिंग कर सकूं। दो दिन बाद फिर वही वकील साहब एक अन्य केस में पेश हुए। इस बार वह जहां बैठे थे उनके पीछे पेंटिंग लगीं थीं। संयोग से वही न्यायाधीश सुनवाई कर रहे थे और उन्होंने फिर पूछा कि क्या आप आर्ट गैलरी में हैं? वकील साहब ने कहा, ‘नहीं, माई लार्ड यह मेरा घर है। मै अपने घर आ गया हूं।’

पांच लाख करोड़ का रहस्य

एमएसएमई के लिए यूं तो सरकार ने तीन लाख करोड़ रुपये के लोन का पैकेज घोषित किया है, लेकिन बड़ी दिलचस्पी पांच लाख करोड़ रुपये के रहस्य को लेकर है। दरअसल एमएसएमई मंत्रलय की ओर से अनौपचारिक रूप से कहा गया कि केंद्र सरकार के पीएसयू एवं विभागों पर छोटे उद्यमियों का पांच लाख करोड़ रुपये का बकाया है। हालांकि इस पांच लाख करोड़ का कभी विवरण जारी नहीं किया गया है कि आखिर किन विभागों और पीएसयू पर कितना बकाया है। मगर सब कुछ जोड़-जाड़कर यह रकम पांच लाख करोड़ रुपये बैठती है। वैसे अभी भी यह तय नहीं है कि यह फंसी हुई रकम आखिर कब तक निकल सकेगी, लेकिन उद्यमी इस बात को ही सोचकर खुश हो रहे हैं कि कभी न कभी तो ये पांच >> लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।

शुक्रवार, 19 जून 2020

चीन का करें बहिष्कार

लद्दाख सीमा पर चीन के सैनिकों की कायराना हरकत से हमारा देश असहनीय पीड़ा से गुजर रहा है। इस घटना के बाद से भारत में स्वाभाविक तौर पर चीन का विरोध शुरू हो गया है। चूंकि भारत एक बड़ा बाजार है, इसलिए यहां चीन से काफी ज्यादा उत्पाद भी आते हैं। मगर अब भारत की जनता और स्थानीय कंपनियों ने चीनी उत्पादों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया है। खबर है कि भारतीय रेलवे ने चीनी कंपनी से साथ किया करार रद्द कर दिया है, तो बीएसएनएल और एमटीएनएल जैसी दूरसंचार कंपनियों में अब चीन की कंपनियों को टेंडर-प्रक्रिया में भाग नहीं लेने दिया जाएगा। जगह-जगह देश की जनता ने भी ‘बायकॉट मेड इन चाइना' की तख्ती टांगकर चीनी उत्पादों को जलाना शुरू कर दिया है। इसका चीन पर असर होगा, क्योंकि उसकी मजबूती उसके व्यापार से है, जो काफी हद तक वह भारत के साथ करता है। अगर प्रत्येक भारतीय यह फैसला कर ले कि वह चीनी सामान का इस्तेमाल नहीं करेगा, तो निश्चय ही शहीद हुए वीर जवानों को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे सकेंगे।


योग की सार्थकता

योग का उद्देश्य व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाना है। कहा भी गया है कि पहला सुख निरोगी काया है, और निरोग शरीर के लिए योग के साथ-साथ हमारी दिनचर्या भी संयमित होनी चाहिए। पूरी दुनिया ने योग के होने वाले फायदों को महसूस किया है, इसलिए 21 जून को योग दिवस के मौके पर पूरा विश्व योग-क्रिया करता है। योग का लक्ष्य स्वास्थ्य-सुधार से लेकर मोक्ष प्राप्त करने तक है। यह एक कला है, जो स्वस्थ शरीर के साथ-साथ स्वस्थ मन को गढ़ने का काम करता है। इससे मिलने वाले प्रत्यक्ष और परोक्ष लाभ को देखते हुए हर आदमी को इसे अपने जीवन में उतारना चाहिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें रोजाना योग अवश्य करना चाहिए। इससे हमें कई तरह के फायदे मिलेंगे।


व्यावहारिक नहीं है विरोध

आवेश में आकर चीनी उत्पादों का दहन। उसके झंडे जलाना। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पुतले और तस्वीरों में आग लगाना। चीनी उत्पादों के बहिष्कार के नारे लगाना। उनको न खरीदने की कसमें खाना। ये सब क्षणिक मानसिक गुस्से का स्वाभाविक इजहार है। मगर चीन पर हमारी निर्भरता इतनी है कि एकबारगी अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। दवा उत्पादों में लगने वाले कच्चे माल से लेकर ऑटोमोबाइल के कल-पुर्जे और इलेक्ट्रॉनिक सामान तक हम आमतौर पर चीन से ही मंगवाते हैं। चीन के उत्पादों की लोकप्रियता का बड़ा कारण यही है कि वे सस्ते होते हैं, जो भारत जैसे गरीब देश की जनता के लिए काफी मायने रखते हैं। इसलिए एक झटके में हम चीन से अपना कारोबारी रिश्ता खत्म नहीं कर सकते। दीर्घ अवधि की कोई योजना ही इसमें कारगर हो सकती है।


गरीबों के नाम पर

अपने देश में केंद्र और राज्य सरकारें गरीबों को सहायता पहुंचाने के लिए तमाम कोशिशें करती रहती हैं। कोरोना के बुरे दिनों में भी आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को राहत पहुंचाने के लिए सरकारें प्रयासरत हैं, लेकिन यह खबर शर्मनाक और निंदनीय है कि कुछ समृद्ध लोग राजनेताओं और सरकारी बाबुओं से मिलीभगत करके फर्जी गरीब बनकर लाभार्थियों की राहत सामग्री हड़प रहे हैं। इससे सरकारी खजाने को भी भारी चूना लग रहा है। अगर हमारे देश में फर्जी गरीब बनकर फर्जीवाड़ा यूं ही चलता रहा, तो आने वाले समय में देश की आर्थिक सेहत और बिगड़ जाएगी। इसका नुकसान हरेक तबके को होगा। इसलिए सरकारों को चाहिए कि वे इस फर्जीवाड़े को रोकने के लिए गंभीरता दिखाएं।


नहीं मिल रहा मजदूरों को लाभ

मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना धरातल पर पहुंची तो जरूर लेकिन उसका वास्तविक लाभ मजदूरों को नहीं मिल पा रहा है। कारण गंवई राजनीति के चलते जॉब कार्ड अपात्रों का जारी कर दिया गया है। मजदूरों को जहां तहां जारी भी किया गया है तो गंवई राजनीति हावी होने के चलते मनरेगा का कार्य नहीं मिल पा रहा है। इसके चलते उन्हें परेशानी हो रही है। कोरोना संक्रमण के दौर से गुजर रहे मजदूर शहरों से पलायन कर गांव पहुंचे पर उन्हें मजदूरी नहीं मिल पा रही है। यह स्थिति कई गांवों में है। शिकायत के बावजूद अधिकारी कुछ नहीं कर रहे हैं। इसकी जांच कराने पर मामला स्पष्ट हो जाएगा।

रखें शारीरिक दूरी का ख्याल

कोरोना संक्रमण की चेन रोकने के लिए शारीरिक दूरी का खयाल रखना बहुत जरूरी है। कहीं भी रहें आपस में शारीरिक दूरी कायम रखें। हर हाल में किसी भी एक दूसरे के सीधे संपर्क में न आएं इससे कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोकने में मदद मिलेगी। अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों की दुकानों समेत अन्य सार्वजनिक स्थलों पर देखा जा रहा है कि लोग शारीरिक दूरी के प्रति सजग नहीं दिख रहें हैं। भीड़ लगाकर दुकानों पर खरीदारी कर रहे हैं। ऐसे में कोई भी कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति अगर भीड़ में शामिल है तो अन्य लोगों में संक्रमण की संभावना अधिक है और स्थिति भयावह हो सकती है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि कोरोना संक्रमण को लेकर शारीरिक दूरी का खयाल रखकर सदैव सजग रहें।

अब संभलने की जरूरत

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौर में हर कोई इससे चिंतित व भयजदा है। लगातार बढ़ते मामलों को लेकर अब और ज्यादा संभलने की जरूरत है, जिससे कोरोना संक्रमण से निजात मिल सके। चिकित्सकों का मानना है कि जून के अंत तक संक्रमित मरीजों का आंकड़ा और बढ़ जाएगा। इसलिए लोगों को संभलने की जरूरत है। दिल्ली समेत अन्य राज्य अपने यहां चिकित्सालयों में पर्याप्त बेड की व्यवस्था कर रहे हैं। इसको देखते हुए लोगों को सतर्क रहने की जरूरत है।

चीन को सबक सीखाने का समय

चुनौतियां आती ही हैं परीक्षा लेने के लिए। क्षमता का आकलन करने के लिए। कौन कितने पानी में है इसकी थाह के लिए। अब वो समय आ गया है जब भारत को अपनी ताकत का अहसास कराना होगा। विश्व पटल पर अपनी छाप दिखाने के लिए चीन को मुंहतोड़ जवाब देना ही होगा। 20 के बदले 20 को जब तक मौत के घाट नहीं उतारा जाएगा जबतक जवानों के बलिदान के साथ न्याय नहीं होगा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने संबंधों को भी तरजीह देने की जरूरत है। एक ऐसी रणनीति तैयार करने की जरूरत है जिसमें चीन सैन्य स्तर से तो झुके ही राजनयिक स्तर पर भी उसे यह लगना चाहिए कि अब भारत से मुकाबला आसान नहीं। अगर ऐसा नहीं हुआ तो देश को जवाब देना मुश्किल होगा। सत्ता पक्ष की असली घड़ी का समय है। हां, एक बात और है। स्थितियां जितनी विपरीत होंगी मुकाबला उतना ही रोचक होगा। देश का बच्चा-बच्चा प्रधानमंत्री के साथ है।

बहिष्कार और आक्रामकता दोनों की जरूरत

वर्तमान स्थितियों में भारत-चीन सीमा पर जैसे हालात बन रहे हैं, उसके मद्देनजर अब चीन के साथ दुश्मन देश जैसा व्यवहार करना जरूरी है। इसके लिए जहां एक ओर जबरदस्त सैन्य आक्रामकता की जरूरत है, वहीं दूसरी ओर चीन निíमत वस्तुओं का देशव्यापी बहिष्कार भी आवश्यक है। संघ का आनुषांगिक संगठन ‘स्वदेशी जागरण मंच’ तो बहुत पहले से ही चीन निíमत वस्तुओं के बहिष्कार की अलख जगा रहा है। लेकिन सस्ते के चक्कर में फंसा हुआ भारतीय उपभोक्ता चीनी उत्पाद से अपना मोह भंग नहीं कर पा रहा था। लेकिन आज जब चीन खुलकर भारत से दुश्मनी निभाने पर उतारू है तो सभी देशभक्त भारतवासियों का यह फर्ज बनता है कि वे चीन निíमत वस्तुओं का बहिष्कार करें, भले ही वह वस्तु कितनी सस्ती और उपयोगी क्यों न हो। भारतीय जन-मानस का यह चीन विरोधी रुख उसकी आíथक कमर तोड़ने के लिए पर्याप्त है। लेकिन इसके लिए जिस जन जागरूकता की जरूरत है, उसका अभाव परिलक्षित हो रहा है। कोरोना के साथ साथ दुराग्रही विपक्ष की आलोचना और असहयोग से जूझ रही मोदी सरकार के लिए अब यह जरूरी है कि वह चीन के उस दुष्प्रचार का कि यदि भारत चीन पर आक्रामक हुआ तो उसे पाकिस्तान और नेपाली सेनाओं का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति से जबाव देते हुए सीमा पर चीन के समक्ष अपनी सैन्य आक्रामकता को बनाए रखे। चूंकि भारतीय सैनिकों ने पहली झड़प में ही चीनी सेना को अपनी ताकत का अहसास करा दिया है, इसलिए अब चीन के समक्ष भारत का रक्षात्मक मुद्रा में रहना कतई उचित नहीं होगा। भारत को चीन के हर दुस्साहस का कड़ाई से प्रतिकार करना चाहिए।

सन्निकट है चीन की पराजय‘ध्वस्त करने होंगे

वर्तमान चीन में हिटलर की आत्मा प्रवेश कर गई है। हिटलर ने पहले ऑस्टिया को निगला। फिर चेकोस्लोवाकिया को कुतरा। जब दो बार अपने साम्राज्यवादी मंसूबों में सफल रहा तो फिर उसने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। यदि पहले ही उसे यूरोपीय देश और अमेरिका सख्त लहजे में समझा देते तो उसे दूसरे विश्वयुद्ध को प्रारंभ करने वाली घटना-पोलैंड पर हमला-करने का दुस्साहस ही न होता। कम्युनिस्ट चीन ने पहले मंचूरिया को हड़पा, फिर इनर मंगोलिया और पूर्वी तुकस्तान पर कब्जा किया। दुनिया चुप रही तभी वह तिब्बत को कब्जाने का दुस्साहस कर सका। यहां तक भी उसकी मनमानी को कोई चुनौती नहीं मिली। तब उसने हिंदुस्तान पर अपनी आंखें गढ़ाईं। भारत को खुद की सुरक्षा में अक्षम पाकर उसकी बांछें खिल गईं। उसने लद्दाख की 37,000 वर्ग किमी भूमि हड़प ली। ऐतिहासिक रूप से भारत के लिए शर्मनाक 1950 का दौर चीन के लिए अत्यंत उत्साहवर्धक रहा। उसकी खुमारी उस पर अभी तक चढ़ी हुई है। 1962 की जीत के नशे में वह इतराता रहता है। यहां तक कि 1967 में सिक्किम में भारतीय सेना से भिडंत में उसकी जो नाक लहूलुहान हुई, उसे उसने भुला दिया है। 1969 में सोवियत रूस ने मंचूरियन सीमा पर चीन को परास्त किया, 1979 में वियतनाम ने उसके 20,000 हजार सैनिकों का खात्मा कर उसे शर्मनाक पराजय दी। उसके बाद कंबोडिया जैसे छोटे देश में भी चीन ने अपना नाम डुबोया। ये चीनी पराभव एवं अपयश के चिन्ह पिछले पचासवर्षो में दुनिया के सम्मुख उभरे हैं। गलवन की घटना में भी हमारी सेना उससे श्रेष्ठ साबित हुई है। अब अगर व्यापार के मोर्चे पर उसे शिकस्त दे दी गई तो चीन की सारी अकड़ झड़ जाएगी। कैट (भारतीय व्यापारियों का सर्वोच्च संगठन) यह इरादा बना चुका है कि दिसंबर तक 15 अरब डॉलर (एक लाख करोड़ रुपये) के बराबर चीनी माल के ऑर्डर वे रद्द करेंगे। यह एक बड़ी चपत चीन को लगने जा रही है। जनता भी चीनी मोबाइल एप जैसे टिकटोक, जूम को नकार रही है। प्रधानमंत्री का आत्मनिर्भरता का आह्वान तथा ‘लोकल के लिए वोकल’ होने का विचार लोगों को भा रहा है। उधर सीमा पर सड़कों का तेज निर्माण एवं विश्व के बेहतरीन शस्त्रों की खरीद अथवा उत्पादन चीन को सबक सिखाने की तैयारी दर्शा रहे हैं। अब चीन की निर्णायक पराजय साफ दिखने लगी है।

चीन का जवाब देना जरूरी

देश की आजादी के कुछ ही वर्षो बाद चीन ने अपनी हरकतों से बता दिया कि उसके साथ संबंध तो रहेंगे लेकिन विश्वास नहीं। पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने दुनिया के विशाल दो देशों के बीच मधुर संबंध विकसित करने की योजना बनाई थी। इसके लिए नारा भी दिया। चीन ने बहुत जल्द 1962 में झटका दिया। उसके बाद से तो स्थितियां बदल ही गईं। हालांकि आर्थिक मोर्चे पर देश की नीतियां बहुत ज्यादा ढुलमुल रही हैं। आज देश में चीन के सामानों का जबर्दस्त फैलाव है। इसके चलते देसी उत्पादन प्रभावित हुआ। कई कंपनियां खत्म हो गईं। उत्पादन खर्च कम करके वस्तुओं के दामों में कमी करने के फामरूले के साथ चीनी उत्पाद ने भारतीयों के बीच अपनी पैठ बनाई। अब इसे तोड़ने का समय आ गया है। 

चीन की दादागिरी

चीन सीमा पर स्थित गलवान घाटी में चीनी सैनिकों से झड़प में 20 भारतीय जवान शहीद हुए। इससे यह सिद्ध होता है कि चीन भी मित्र नहीं अपितु पीठ पीछे छूरा घोंपने वाला कायर देश ही है। अब वक्त बदल चुका है और सहन करने की सीमा भी पार हो चुकी है। सरकार को भी चीन नीति बदलनी होगी, जिसके तहत हंदूी-चीनी, भाई-भाई का नारा बुलंद किया जाता रहा है। हमारा देश काफी समय से चीनी उत्पादों का आयात कर चीनी अर्थव्यवस्था को ही मजबूत करता रहा है। इसको भी बिल्कुल ही बंद करना होगा। आर्थिक और कूटनीतिक दोनों स्तर पर चीन के खिलाफ हमला ही हमारे वीर जवानों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

सस्ता उत्पाद बनाएं कंपनियां

चीन के साथ विवाद के चलते लोगों में उसके प्रति गुस्सा और चाइनीज सामान के प्रति नफरत छाई है। चारों ओर से चाइनीज सामान के बहिष्कार की आवाज उठ रही है। सस्ता और सर्वसुलभ के कारण आज हर हाथ में चाइनीज सामान है। इन सामान के बहिष्कार से पहले हमें अपने दैनिक उपयोग के सामान का सस्ता उत्पादन करना होगा। भारतीय कंपनियों को सभी प्रकार के उत्पाद काफी कम लागत पर बनाकर देश के आंतरिक इलाकों तक पहुंचाना होगा। भारतीय कंपनियां अपने महंगे प्रचार खर्च और मुनाफा में कटौती कर सभी जरूरी चीजों के दामों पर नियंत्रण रखकर लोगों तक पहुंचाए, लोग खुद ब खुद विदेशी छोड़ स्वदेशी अपनाने लगेंगे।

स्थगित हो परीक्षाएं

कोविड-19 महामारी के कारण शिक्षा और स्वास्थ्य के बीच संघर्ष जारी है। असल में, अगले महीने सीबीएसई 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं आयोजित करना चाह रहा है। मेडिकल और इंजीनियरिंग की कई प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन भी अगले माह होना है। मगर कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए कई अभिभावकों ने इन परीक्षाओं के आयोजन को लेकर चिंता जताई है, जो वाजिब भी है। इन परीक्षाओं में लाखों परीक्षार्थी शामिल होते हैं। ऐसे में, इनका आयोजन बच्चों व किशोरों के स्वास्थ्य के मद्देनजर होना चाहिए। किसी भी प्रकार की हड़बड़ी या लापरवाही लाखों प्रतियोगियों की सेहत को खतरे में डाल सकती है। लिहाजा स्वास्थ्य और शिक्षा के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है।

तेल के बढ़ते दाम

कोरोना संकट और चीन-सीमा विवाद के बीच पेट्रोल-डीजल के दाम लगभग पांच रुपये प्रति लीटर बढ़ चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कम हुई कीमतों का कोई लाभ शायद ही भारतीयों को मिल पाया। कारण स्पष्ट है कि जन-हितकारी सरकार आम आदमी को होने वाले लाभ को अपनी कमाई में जोड़कर अपना गणित सुधारने में जुटी रही। आम आदमी के बिगड़े हुए गणित से जैसे उसे कोई सरोकार न हो। पेट्रोलियम पदार्थों पर मनमानी नीतियां लागू करके सरकार जनमानस को क्या संदेश देना चाहती है, यह तो वही जाने, पर आम आदमी के लिए ऐसी नीतियां कष्टकारी सिद्ध हो रही हैं, जिसका एहसास सरकार को होना ही चाहिए।

विश्वासघाती चीन

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हमारे सैनिकों पर अचानक हमला करके चीन ने अक्षम्य अपराध किया है। इस विश्वासघाती हमले के बाद भारत और चीन के बीच रहा-सहा विश्वास भी दरक गया है। अब चीन को कड़ा सबक सिखाना ही चाहिए। इसके लिए सैन्य, कूटनीतिक, राजनीतिक उपायों के साथ-साथ जबर्दस्त आर्थिक नाकेबंदी भी हमें करनी होगी, ताकि उसकी अर्थव्यवस्था को चोट लगे। वहां से होने वाले आयात में हरसंभव कटौती का प्रयास केंद्र सरकार को करना चाहिए। ऐसी खबरें आई हैं कि हमारे यहां कई प्रोजेक्ट में चीन की कंपनियों को ठेके दिए गए हैं। उन ठेकों को रद्द करते हुए नए टेंडर जारी किए जाने चाहिए और उसमें चीनी कंपनियों के शामिल होने पर रोक लगा देनी चाहिए। हमारे देश में ही करोड़ों प्रशिक्षित लोग बेरोजगार हैं। हम उनके श्रम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर हम ‘मेक इन इंडिया' को बुलंद कर सके, तो आत्मनिर्भर आसानी से बन सकेंगे। चीन की हर तरह से आर्थिक कमर तोड़ने के अलावा भारत के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।

योग शिक्षकों की अनदेखी

यह सच है कि सरकार ने योग को देश की प्राचीन पद्धति के रूप में अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई। आज हम सभी स्वस्थ जीवन जीने के लिए योग-क्रिया करते हैं। यह बात भी साबित हो चुकी है कि नियमित योग करने से स्वस्थ और शांतिपूर्ण जीवन जीने में काफी मदद मिलती है। परंतु यह भी एक दुखद सत्य है कि सरकार योग शिक्षकों को लगातार उपेक्षित कर रही है। नियमित योग शिक्षकों को बहाल करने की बजाय अनुबंध पर कुछ स्कूलों में शिक्षकों को बहाल करके उनके भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है। राज्य सरकार योग दिवस पर आयोजन करके अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। शारीरिक शिक्षा अनुदेशकों की बहाली निश्चय ही अच्छी बात है, लेकिन जिन विद्यार्थियों ने योग में पीजी डिप्लोमा और एमए किया है, उनके बारे में केंद्र या राज्य सरकारों का न सोचना काफी दुखद है। स्थाई रोजगार से ही हम विद्यार्थियों में विश्वास पैदा होगा, तभी स्वस्थ तन और मन का भी विकास हो सकेगा।

बुधवार, 17 जून 2020

चीनी सामानों का करें बहिष्कार

जिस प्रकार बॉर्डर पर चीन ने वार्ता की आड़ में भारत के पीठ में छुरा घोप कर हमारे 20 सैनिकों की जान ली है, उससे सिद्ध होता है कि वह सभ्यता की भाषा नहीं जानता। उसके साथ भी शठे शाठ्यम समाचरेत वाला व्यवहार करना होगा। देश भी अब 1962 वाला देश नहीं है। हम उससे लड़ने की पूरी क्षमता रखते हैं। हम सभी चीनी सामानों का सौ फीसदी बहिष्कार करें। यही देशभक्ति है। भारत के सैनिक भी उन्हें भरपूर जवाब दे रहे हैं और यह होना चाहिए। यदि वह शांति की भाषा नहीं समझता है तो यह आत्म सम्मान के लिए जरूरी है।

किसानों की बुनियादी समस्या हो दूर

भारत में कृषि कार्य मानसून का जुआ माना जाता था। स्वतंत्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाएं बनीं, हरित क्रांति की बातें की गईं। तत्कालीन सरकारों के पास इच्छाशक्ति की कमी होने से किसानों की बुनियादी समस्याओं को ठीक से समझा नहीं गया। नतीजतन, किसान कर्ज में जन्म लेता है, कर्ज में जीता है, और कर्ज के चलते असमय जीवन गंवा देता है। कुछ संपन्न और बड़ी जोत के किसानों को छोड़ दें तो आज भी हालात ज्यों के त्यों हैं। उपज का उचित दाम न मिलने, प्राकृतिक आपदा और बिचौलियों के शोषण से अन्नदाता बमुश्किल अपना जीवन गुजार पा रहे हैं। यही कारण है कि कृषि के प्रति किसानों का उत्साह कम होता जा रहा है। कृषि कार्य से विमुख होकर किसान दूसरे काम, धंधों की ओर उन्मुख हो रहे हैं। 

चीन की चाल

सुपर पावर बनने की चीन की चाहत ने आज दुनिया के लिए एक चुनौती खड़ी कर दी है। पहले उसने कोरोना रूपी संकट दुनिया के सामने खड़ा किया और अब अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए भारतीय सीमा में दखल दे रहा है। इस स्थिति में भारत की विदेश नीति कमजोर पड़ती दिख रही है। स्थिति यह है कि चीन ने अपने नापाक इरादों को पूरा करने के लिए नेपाल को भी हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है, जबकि अब तक काठमांडू हमारा सबसे विश्वसनीय मित्र रहा है। प्रधानमंत्री को बाकी सभी देशों के साथ मिलकर चीन से आ रही चुनौती से निपटना चाहिए। उन्हें चीन के खिलाफ डटकर खड़ा होना चाहिए।

कृषि और स्वरोजगार की शिक्षा दें

देश को विभिन्न समस्याओं से मुक्त करने में पढ़े-लिखे नागरिकों का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब वे किताबी पढ़ाई-लिखाई के साथ नैतिकता और इंसानियत का सबक भी पढ़ें। स्कूलों से आत्मनिर्भरता की राह तभी निकल सकती है, जब विद्याÍथयों को देशसेवा, जनसेवा का भी सबक पढ़ाया जाए। यही नहीं हमारे देश की आत्मनिर्भरता की राह में जनसंख्या भी एक बहुत बड़ी बाधा है। स्कूलों और अन्य शिक्षण संस्थाओं से हर वर्ष लाखों की संख्या में युवा पढ़ाई-लिखाई कर रोजगार तलाशने की ओर अग्रसर होते हैं। इनमें बहुत से दफ्तरी रोजगार पाने की लालसा रखते हैं। अगर इन्हें शिक्षा संस्थानों में कृषि और अन्य स्वरोजगार के बारे में भी पढ़ाया-समझाया जाए तो यह इनके बेहतर भविष्य के लिए उचित होगा। इससे देश में बेरोजगारी की समस्या से भी निपटने में काफी मदद मिलेगी। स्वरोजगार से देश में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।

जवाब देने का वक्त

चीन से जिस तरह का अंदेशा था, आखिर उसने वही विश्वासघात किया। भारतीय सैनिकों के शहीद होने की खबर से पूरा देश शोकाकुल है। भारत इसका बदला जरूर लेगा, लेकिन पीठ पीछे वार करके नहीं। इस हमले में चीन की कायरता ही नजर आई। इसलिए अब हमें अपनी चीन-नीति बदल लेनी चाहिए। हमें अब मान लेना चाहिए ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई' कभी नहीं हो सकते। अब चीन से सभी तरह के राजनीतिक, आर्थिक, अंतरराष्ट्रीय और सैन्य समीकरण बदल जाने चाहिए। चीन को अलग-थलग करने की लड़ाई अब प्रमुखता से लड़ने की जरूरत है। भारत के लिए यह माकूल समय है, जब लगभग आधी दुनिया चीन के खिलाफ है। अब भारत सन 1962 वाला नहीं रहा। चीन को मजबूत जवाब दिया जाना चाहिए।

खान-पान पर भी बरतें सावधानियां

कोविड-19 के संक्रमण से बचने के लिए हर व्यक्ति को खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बाहर की वस्तु का सेवन कदापि न करें और बच्चों को भी दुकानों के खुले सामान आइसक्रीम, कोल्डिंक्स इत्यादि का सेवन कतई न करने दें। घर में भी फ्रिज का बहुत ठंडा पानी व अधिक मसाला का सेवन न करें। कोरोना वायरस के साथ ही भीषण गर्मी का प्रभाव भी व्यक्ति के ऊपर पड़ता है, जिससे तरह-तरह की बीमारियां पांव पसारने लगती हैं। बाहरी सामानों के सेवन से संक्रमण का खतरा हर पल बना रहता है। इस नाते संकट के इस दौर में भरसक प्रयास करें कि बाहर के सामानों का सेवन न करना पड़े, जिससे संक्रमण को रोका जा सके। 

अनलॉक में खुद पर नियंत्रण जरूरी

जनपद में तेजी से कोरोना संक्रमित लोगों का तादात बढ़ रहा है। बाहर से असुरक्षित तरीके से यात्र कर आए श्रमिकों से संक्रमण बढ़ गया है। अभी भी बड़ी संख्या में प्रवासी लोग अपने-अपने घरों में छिपे पड़े हैं। उन्हें अतिरिक्त सावधानी बरतते हुए खुद ही अपने को क्वारंटीन होना चाहिए। अपने परिजनों की भलाई के लिए सभी आगंतुक प्रवासी लोगों को प्रशासनिक और चिकित्सीय सलाह को मानते हुए स्वयं शारीरिक दूरी बनाकर सुरक्षित रहना चाहिए। जरा भी खांसी, बुखार व कोई कोरोना का लक्षण दिखे तुरंत डॉक्टर को फोन कर बुलाये। अनलॉक का मतलब कोरोना का समाप्ति नहीं है अभी और ज्यादा सावधानी पूर्वक रहने की जरूरत है। घर के बच्चों और बुजुर्गों सहित बीमार लोगों का विशेष ख्याल रखना बहुत जरूरी है। 

बढ़ती परेशानियां

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने देश में नई बहस छेड़ दी है। यह बताता है कि देश में तनाव और अवसाद के चलते आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे मामलों में नौजवान तुलनात्मक रूप से अधिक दिख रहे हैं, जो देश और समाज के लिए गंभीर संकेत है। आज अवसाद और तनाव की समस्या इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि शायद ही कोई इससे अछूता है। सेलिब्रिटी इससे ज्यादा पीड़ित हैं, क्योंकि उन पर पूरे देश और समाज की नजर होती है। परेशानी की बड़ी बात यह है कि लोग इस समस्या पर अपनों से भी खुलकर बातें नहीं करते। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि आज भी हमारे देश में शिक्षा की कमी है। घर, स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, कहीं पर भी अवसाद या हताशा पर चर्चा नहीं होती, इसे अनसुना कर दिया जाता है। इसी के कारण पीड़ित अपनी समस्या पर बात नहीं कर पाता औरवह अंदर-अंदर घुटता रहता है, और अंत में आत्महत्या की राह चुन लेता है। इस समस्या पर वक्त रहते ध्यान देना होगा।

पीठ पर वार

किसी मुल्क का क्षेत्रफल उसके साहस का परिचायक नहीं होता। अगर होता तो चीन जैसा देश पेट्रोलिंग पर भारतीय सेना द्वारा लौटाए जाने पर यूं छुपकर रॉड–पत्थर व कंटीले तारों से पीठ पर वार नहीं करता। चीन हमेशा से हमारी पीठ पर खंजर घोपता आया है। चाहे वो १९६२ का युद्ध ही क्यों न हो। डोकलाम में भारत ने उसे जिस कूटनीति से हराया था शायद वो उसे दोबारा दोहरा कर खुद को विश्व पटल पर किसी भी कीमत पर कमजोर नहीं दिखना चाहता है। इसीलिए बातचीत के बीच भी वो इस तरह की झड़प कर भारत को डराना चाहता है। आज हर भारतीय को ५६ इंच के साथ अपनी सेना के साथ खड़ा होना है। 

आत्महत्या से सभी आहत

बिहार के छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखने वाले एक आम इंसान ने चांद को छू लेने जैसे सपने देखे। उसे पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई से लेकर महज 34 वर्ष की उम्र में भारतीय फिल्म जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई और कामयाबी की बुलंदियों की ओर धीरे-धीरे बढ़ते हुए ऊंचाई पाई। यह सुशांत सिंह राजपूत की कठिन परिश्रम का नतीजा था। अचानक उनकी खुदकुशी की खबर ने सभी को चकित कर दिया। यह आत्महत्या की खबर तथाकथित समाज विकास की विडंबनापूर्ण एवं त्रसद तस्वीर को बयां करती है। इस तरह आत्महत्या करना जीवन से पलायन का डरावना सत्य है। संपूर्ण मानवता इनके इस कदम से आहत है। 

चीन को जवाब जरूरी

अच्छे पडोसी एक दूसरे के काम आते हैं‚ जिसमें उनकी भलाई है। मगर पडोसी देश पाकिस्तान‚ चीन के बाद अब पिद्दी सा देश नेपाल भी भारत के क्षेत्र को अपने नक्शे में दिखाकर आंख दिखा रहा है‚ जो बड़े आश्चर्य की बात है। इससे यह साफ है कि पाकिस्तान और नेपाल ये हरकतें सिर्फ चीन के इशारे पर ही कर रहे हैं वरना तो इनकी औकात ही क्या है। सबसे पहले तो चीन से ही अब दो हाथ करने होंगे। इसके बाद इन दूसरों की तो कोई हिम्मत ही न होगी। देश आज शक्ति और संसाधनों से किसी से पीछे नहीं है। ऐसे में अच्छी‚ ठोस और सही नीति तथा नीयत से आगे बढ़ना जरूरी है। 

अश्लीलता के खिलाफ

विगत कुछ वर्षों में आधुनिकता और मनोरंजन के नाम पर फिल्मों समेत वीडियो, गाने आदि में धड़ल्ले से अब अश्लीलता परोसी जाने लगी है। सबसे बड़ी दिक्कत की बात यह है कि लोग इसे आधुनिकता का प्रतीक मानकर सामान्य जीवन में भी उतारने लगे हैं। इससे न केवल भारतीय संस्कृति और सभ्यता पर गहरा दाग लग रहा है, बल्कि बच्चे, बुजुर्ग, युवा, सभी के मन-मस्तिष्क में अश्लीलता पनपने लगी है। इसी का नतीजा है कि देश के विभिन्न हिस्सों से दुष्कर्म की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। प्राचीन समय में सिनेमा जागरूकता, आचार-व्यवहार, संस्कार, न्याय और सभ्य जीवन शैली सिखाने का एक सशक्त-सकारात्मक माध्यम था, पर आज यह हमारे समाज को दीमक की तरह चट कर रहा है। साफ है, सेंसर बोर्ड इसके लिए जिम्मेदार है। अश्लीलता रोकने की बजाय वह अपनी मोटी कमाई के लिए बेसिर-पैर की फिल्मों को जारी करने की अनुमति देता है। इस प्रवृत्ति पर जल्द से जल्द रोक लगनी चाहिए।

चीन की नापाक हरकत

चीन ने लद्दाख में हाल ही में जो नापाक हरकत की‚ वो उसके नापाक इरादों को उजागर करती है। जहां एक तरफ आज जब सारी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना के संकट से जूझ रही है‚ वहीं हमारे देश के नापाक पड़ोसी देशों को शरारत करने की सूझ रही है‚ जोकि बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय है। चीन ने भारत–चीन सीमा पर गलवान घाटी में पाकिस्तान जैसी अपनी नापाक हरकत को अंजाम देकर यह साफ कर दिया कि यह भी भरोसे लायक नहीं है‚ इसकी कथनी–करनी में जमीन आसमान का फर्क है‚ यह भी दोस्ती की आड़ में दुश्मनी निभा सकता है‚ लेकिन फिर भी चीन की इस नापाक हरकत ने मोदी सरकार की विदेश नीति और नापाक पडोसियों को सख्त सबक सिखाने की नीयत को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। 

दिनचर्या चलाना मुश्किल

तेल की कीमतों में नरमी आने के बावजूद देश में पेट्रोल और डीजल के दामों में कोई भी राहत नहीं हुई है। आम जनता ने इस पर आपत्ति जताई तो पेट्रोलियम उद्योग के अधिकारियों ने कहा कि यह वृद्धि अवश्यंभावी है क्योंकि कोविड–१९ महामारी के कारण जब देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया एवं आÌथक गतिविधियां ठप हो गई थीं‚ तो तब पेट्रोलियम पदार्थों के दाम एक समय में दो दशक के निम्न स्तर पर पहुंच गए थे। परंतु गौरतलब है कि जहां लोग पहले से ही लॉकडाउन के कारण अपनी जेबें जरूरत से ज्यादा ढीली कर चुके हैं‚ तो ऐसे में महंगाई इतनी बढ़ जाएगी तो लोग अपनी दिनचर्या कैसे जिएंगे॥

मंगलवार, 16 जून 2020

नेपाल की मंशा

पड़ोसी देश नेपाल जिस तरह से चीन की जुबान बोल रहा है, उससे लगता है कि चीन कोई राजनीतिक चाल चलने की तैयारी कर चुका है। भारत की चेतावनी के बाद भी नेपाल ने लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा इलाके को अपने नए नक्शे में शामिल कर लिया और उस पर राजनीतिक मुहर लगा दी। इससे लगता है कि वह पूरी तरह से भारत के साथ अपने रिश्तों को भूल चुका है। सीमा पर बेवजह का विवाद खड़ा करके वह चीन के हाथों की कठपुतली बन गया है। इस विवाद से निरंतर नेपाल और भारत के संबंध बिगड़ रहे हैं। अच्छी बात है कि भारत ने अब भी बातचीत करके मसले को सुलझाने का भरोसा दिया है। इससे नेपाल को भारत की भलमनसाहत का एहसास हो जाना चाहिए।

अफवाहों को रोकें

जब हमारा देश कोरोना महामारी से जूझ रहा है और सरकार-प्रशासन समेत सभी संवेदनशील नागरिक अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं, तब कुछ लोग सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप जानकारी साझा कर रहे हैं, जबकि इसके माध्यम से सरकारी अधिकारी भी आम लोगों के लिए दिशा-निर्देश जारी करते रहते हैं। दिक्कत यह है कि जागरूकता के अभाव में कई लोग इन भ्रामक जानकारियों में फंस जाते हैं। इन अराजक तत्वों पर जल्द से जल्द कार्रवाई होनी चाहिए। यह संबंधित विभाग का दायित्व है कि वह स्वत: संज्ञान लेकर उन लोगों पर कार्रवाई करे, जो गलत सूचनाएं साझा करते हैं और लोगों को भ्रमित करते हैं। आज जब देश एक मुश्किल दौर से गुजर रहा है,तब सोशल मीडिया के माध्यम से हम कई अच्छे काम कर सकते हैं। एकांतवास के इस दौर में आभासी तौर पर लोगों को जोड़ना वक्त की मांग है। रिश्तों को तोड़ने की कोशिश करना अक्षम्य अपराध माना जाना चाहिए।

चिंता बढ़ाते हालात

अनलॉक-1 में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। माना कि अपने यहां रिकवरी रेट, यानी मरीजों के ठीक होने की दर लगातार सुधर रही है, लेकिन संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ना चिंता की बात है। यह स्थिति तब है, जब सरकार अपनी तरफ से हालात संभालने की पूरी कोशिश कर रही है। ऐसे में, नागरिकों को चाहिए कि वे कहीं ज्यादा गंभीर हो जाएं। दो गज की दूरी का हरसंभव पालन करें और बेवजह घर से बाहर न निकलें। सरकार सजग है, तो हम भी सतर्क रहें। ऐसा करने पर ही हम कोरोना-मुक्त देश बन सकते हैं।

खुदकुशी उपाय नहीं

बिहार के छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखने वाले एक आम इंसान ने चांद को छू लेने जैसे सपने देखे और उसे पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके भारतीय फिल्म जगत में अपनी अलग पहचान बनाना और कामयाबी की बुलंदियों की ओर बढ़ना सिर्फ सुशांत सिंह राजपूत की कठिन परिश्रम का नतीजा था। अचानक उनकी खुदकुशी ने सभी को चकित कर दिया। आत्महत्या की यह खबर तथाकथित विकसित समाज की त्रासद तस्वीर को उजागर करती है। आज तमाम ऐशो-आराम होने के बाद भी मानसिक तनाव और अवसाद जैसी समस्याएं विराट हैं। यही कारण है कि आत्महत्या की खबरें अब रोजाना आने लगी हैं। मगर यह याद रखना चाहिए कि सभी के जीवन में संघर्ष का एक दौर आता है। यह कभी लंबा होता है, तो कभी छोटा। लेकिन संघर्ष के बाद ही हमें सफलता मिलती है, इसलिए जीवन के इस बदलते परिवेश में खुद को ढालना चाहिए और जीवन के हर एक पल को जीना चाहिए। यह समझना चाहिए कि हार के बाद ही जीत है।

सोमवार, 15 जून 2020

रक्तदान की जरूरत

इस साल के जून के 14 जून को रविवार को पूरी दुनिया ने रक्तदान दिवस मनाया। मगर रक्तदान का दिन तो हर रोज है, क्योंकि हर पल, किसी न किसी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण होता है। जरूरतमंद को रक्त मिल जाए, तो उसकी जान बचाई जा सकती है। लेकिन आज की सच्चाई यह भी है कि रक्तदान करने से कई पढ़े-लिखे लोग भी डरते हैं। इससे जुड़ी कई भ्रांतियां हमारे समाज में मौजूद हैं, जिनको दूर करना बहुत जरूरी है। इसके साथ ही ब्लड बैंक की उपलब्धता भी हर जगह होनी चाहिए। हर गांव-हर शहर में ब्लड बैंक का जाल होना आवश्यक है। अगर ऐसा होता है, तो रक्तदान करने लोग स्वयं आगे आ सकेंगे और आपात स्थितियों में किसी को भी खून की कमी से नहीं जूझना होगा। सिर्फ रक्तदान दिवस मनाने से कुछ नहीं होगा, रक्तदान के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास भी सरकारों को करना होगा।

स्वास्थ्य सेवाओं में हो सुधार

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं काफी हद तक चरमरा गई हैं। यहां सीएचसी व पीएचसी संसाधनविहीन हैं। यहां मरीजों के इलाज के लिए मुकम्मल व्यवस्था नहीं है। गांवों में लोगों को न तो बेहतर इलाज मिल पा रहा है और ना ही दवाएं। यहां चिकित्सकों की मनमानी जारी रहती है। धड़ल्ले से मरीजों को बाहर की दवाएं लिखने के साथ ही कई तरह से शोषण किया जाता है। ऐसे में विवश लोगों को जिला अस्पताल का ही रूख करना पड़ रहा है। इस पर जिलाधिकारी को ध्यान देने की आवश्यकता है।

लापरवाह तंत्र

कोरोना से संक्रमित लोगों की सारी उम्मीदें अस्पताल और डॉक्टरों द्वारा हो रहे इलाज पर टिकी हैं। लेकिन यह अफसोस की बात है कि अस्पतालों में मरीजों को जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, वे उन्हें नहीं मिल रही हैं। वहां मरीजों की संख्या के हिसाब से बेड कम हैं और साफ-सफाई पर भी कुछ खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या अस्पतालों की इस कुव्यवस्था को दूर करने के लिए सरकार कोई सख्त कदम उठाएगी? डॉक्टर, नर्सें और पैरा मेडिकल स्टाफ, जो दिन-रात कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में जुटे हुए हैं, उनकी सेहत और सुरक्षा पर भी ध्यान देना जरूरी है।

जरुरी है लॉकडाउन का अनुपालन

कोरोना वायरस वैश्विक महामारी से आज पूरा विश्व जूझ रहा है। ऐसे में हमें अपने और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए लॉकडाउन के नियमों का अनुपालन करते हुए स्वयं सुरक्षित रहना चाहिए। लॉकडाउन में भले ही ढील होने से लोगों का आवागमन भी शुरू हो गया है। लेकिन इस समय भी खतरा ज्यों का त्यों बरकरार है। ऐसे में बहुत जरूरी होने पर ही हमें अपने घरों से बाहर निकलना चाहिए। बार-बार साबुन से हाथ धुलना व सैनिटाइजर का प्रयोग करना चाहिए। हर समय मास्क लगाकर ही कहीं जाएं। इसके अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। हमें अपने कीमती समय का सदुपयोग अपने बच्चों के साथ करना चाहिए। हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हम बच्चों की सुरक्षा के लिए उन्हें कत्तई घरों से बाहर न निकलने दें। ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा का भरपूर लाभ बच्चों को प्रदान करें। याद रखें कि हमारी जरा सी असावधानी और नियमों की अनदेखी हमारे और हमारे परिवार को खतरे में डाल सकती है। इसलिए लॉकडाउन के नियमों का अनुपालन हमें हर हाल में करना चाहिए।

बॉलीवुड पर ग्रहण

इस साल लगता है, बॉलीवुड को ग्रहण लग गया है। अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत दुनिया को अलविदा कह गए। अभी कुछ दिनों पहले ही इरफान खान और ऋषि कपूर ने भी हमसे विदाई ली थी। साफ है, कोरोना काल में न जाने कितनी विपदाएं आई हैं और न जाने कितना कुछ देखना बाकी है। बहरहाल, सुशांत सिंह की मौत का रहस्य शायद ही सामने आ पाए, लेकिन इससे पता चलता है कि बॉलीवुड में हंसते-मुस्कराते चेहरे के पीछे भी कई गहरे राज छिपे होते हैं। जिंदगी में सब कुछ मिलने के बाद भी कोई कलाकार जीवन से नाखुश हो सकता है। इतना सुलझा, शांत और सादगी भरा जीवन जीने वाला इंसान इतना अकेला कैसे हो गया, और दुनिया को इसका पता भी नहीं चल सका, ताकि उसका हाथ थामकर उसे तनाव से बाहर निकाल लिया जाता? ग्लैमर की दुनिया का शायद अलग ही दस्तूर है, जो आम आदमी कतई नहीं समझ सकता।

शिक्षण कार्य जरूरी

कोरोना संक्रमण काल के दौरान जहां एक तरफ पूरी दुनिया की रफ्तार थम गई है, वहीं शिक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह से बेपटरी हो गई है। इसको लेकर सरकार व प्रशासन को ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिससे एक बार फिर बंद पढ़े स्कूलों में शिक्षण कार्य शुरू हो सके। वजह कि गत सत्र में छात्रों को बिना परीक्षा दिए ही अगली कक्षा में पहुंचा दिया गया है। ऐसे में भले ही बच्चों की सुरक्षा हुई है लेकिन उनकी शिक्षण क्षमता प्रभावित हुई है। ऐसे में इस पर विशेष ध्यान देकर व्यवस्था में बदलाव करनी चाहिए।

जानलेवा अकेलापन

फिल्म ‘छिछोरे' में एक पिता आत्महत्या करने की कोशिश करने वाले अपने बेटे को अवसाद से उबारते हुए कहते हैं, ‘अगर जिंदगी में सबसे अधिक कुछ जरूरी है, तो वह है, खुद की जिंदगी'। इस डायलॉग को कहने वाले रील लाइफ के अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत खुद को असली जिंदगी के अवसाद से उबार न सके। आखिर क्यों? जब हमें काफी मेहनत के बाद सफलता मिलती है, तो हम उस सफलता के इतने दीवाने हो जाते हैं कि जरा-सी असफलता भी हमें अंदर से तोड़ देती है। इस तरह की असफलता हमें अवसाद की ओर ले जाती है। संयुक्त परिवार न होना हमारे अकेलेपन पर हावी हो जाता है, जिसके कारण हम इतने परेशान हो जाते हैं कि अपनी सबसे कीमती जिंदगी भी स्वयं समाप्त कर देते हैं। अवसाद में डूबे इंसान के लिए अकेलापन जानलेवा होता है। इस समय हमें सबसे अधिक अपनों की जरूरत होती है, जो हमारा ख्याल रख सके। अपने सहयोगी कर्मचारियों के होने के बावजूद प्यार और ख्याल रखने वाले अपनों की कमी ने शायद सुशांत सिंह राजपूत को हमसे दूर कर दिया।

गलत निर्णय का खमियाजा

दिल्ली में जिस तरह से कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़øती जा रही है‚ उससे तो यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हालात को संभालने में केंद्र और राज्य सरकार विफल रही है। केजरीवाल सरकार ने लॉकड़ाउन खोलने में जिस हल्केपन का परिचय दिया‚ उससे हालात तो बिगड़़ने ही थे। जब हालात बेकाबू होने को है तो केंद्र सरकार अपने स्तर पर दिल्ली में नियम–कायदे लगाएगी। यह समझदारी नहीं है। पहले से इस बात का होमवर्क किया जाना जरूरी था।

कार्यशैली में हो बदलाव

छोटे विवादों के बाद पीड़ित पक्ष थाने पर न्याय के लिए पहुंचते हैं तो थाने पर पीड़ितों को न्याय दिलाने की रवैया भी बहुत अजीब है। समस्या के समाधान या मुकदमा दर्ज कराने के बजाए पीड़ित और विपक्षी को थाने पर बुलाया जाता है। विपक्षी की पैठ पुलिस में अच्छी होने पर उसको तवज्जो और पीड़ित को दबाव दिया जाता है। पुलिस आपराधिक मुकदमा दर्ज करने के बजाए पंचायत करने में जुट जाती है। लाचार पीड़ित पुलिस के खौफ से दबाव में आकर बगैर समाधान के सुलह पर सहमत हो जाता है। जिससे पीड़ितों को थाने स्तर से बहुत ही कम न्याय मिल पाता है। जिसकी वजह से आपराधिक घटनाएं अधिक हो रही हैं। पुलिस की लापरवाही से पीड़ितों को नुकसानी भी उठानी पड़ रही है। ऐसे में थाने पर पुलिस की कार्यशैली में बदलाव समय की मांग है। जिससे निरीह पीड़ितों को न्याय मिल सके।

भारत और नेपाल संबंधों को मजबूत बनाएं

भारत और नेपाल मैत्री संबंध इतने गहरे थे कि दोनों देशों के नागरिक बिना किसी पासपोर्ट–वीजा के आया करते थे। आज भी भारत नेपाल को अपना अच्छा मित्र मानता है‚ लेकिन पिछले कुछ महीनों से न जाने किसकी काली नजर लग गई‚ जिससे नेपाल ने पूरा तेवर ही बदल दिया। चाहे नेपाल में आने वाला विनाशकारी भूकंप हो या अन्य समस्याएं‚ नेपाल की मदद को भारत हमेशा तैयार रहता है। नेपाल की संसद में सीमा विधेयक को पारित करने से सीमा विवाद और गहरा हो रहा है। दोनों देशों को हर स्तर पर अपने संबंधों को बचाना चाहिए। विश्व में इतना बड़ा उदाहरण और कहां हो सकता है‚ जहां बिना पासपोर्ट और वीजा के यात्रा की जा सके॥

भ्रष्टाचार और लालफीताशाही बड़ी बाधा

प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना के तहत विदेशी कंपनियों के निवेश को लेकर किया गया विश्लेषण सटीक है। निश्चित ही हमारे देश का आधारभूत ढांचा और अन्य परिस्थितियां अभी ऐसी नहीं हैं जो चीन से बाहर निकलने को आतुर बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपनी ओर आकर्षति कर सकें। आजादी के बाद इस देश की नीति नियंत्रक राजनीति का उद्देश्य राष्ट्र-विकास की अपेक्षा स्व-विकास बन गया। जिसके फलस्वरूप राजनीति में भ्रष्टाचार और कदाचार को प्रश्रय मिलने लगा। ऐसे में राजनीति की चेरी बन चुकी देश की प्रशासनिक मशीनरी भी इससे अछूती नहीं रही। आज भले ही प्रधानमंत्री मोदी का सपना भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का है, लेकिन इस देश की राजनीति और लालफीताशाही में व्याप्त आधिकारिक भाव और तद्जन्य भ्रष्टाचार विकसित और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सबसे बड़ी बाधा बन रहे हैं। यद्यपि अब देश में विकास योजनाओं के क्रियान्यवयन को लेकर वैसी स्थिति नहीं रही जिसके संबंध में यह कहा जाता रहा है कि विकास के नाम पर केंद्र से निकलने वाला एक रुपया मूल लाभार्थी तक पहुंचते-पहुंचते 15 पैसे रह जाता है, शेष 85 पैसे ऊपर से नीचे तक की हिस्सेदारी की भेंट चढ़ जाता है। अब मोदी की डिजिटल इंडिया में केंद्रीय विकास योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थी को मिल रहा है। बावजूद इसके ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की तर्ज पर भ्रष्टाचार के आदी लोग हर चौकसी का तोड़ निकाल ही लेते हैं। अब जहां तक विदेशी कंपनियों के निवेश का प्रश्न है तो वे भी पग-पग पर नियमों का हवाला देकर अवरोध पैदा करने वाली भारत की प्रशासनिक मशीनरी से सशंकित हैं। ऐसे में सरकारी काम-काज को निर्बाध रूप से संपादित करने के लिए डिजिटल इंडिया के न्यू कांसेप्ट को बढ़ावा देकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की जरूरत है

सिनेमा जगत से स्तब्धकारी खबर

सिनेमा जगत से ऐसी खबर निकलकर आई जिसने लोगों के अंतर्मन को झकझोर कर रख दिया। समाज में कुछ ऐसे भी चेहरे होते हैं जिनसे हम कभी रूबरू तो नहीं हुए रहते सिवाय बड़े पर्दे के लेकिन उनके चले जाने से दर्द अपनों जैसा होता है। इतनी कम उम्र में अभिनय की दुनिया में बड़ा मुकाम हासिल करने वाले सुशांत सिंह राजपूत के जाने से उनके करोड़ों चहेते स्तब्ध हैं। हाल ही में आई फिल्म ‘छिछोरे' में सुशांत ने खुदकुशी न करने के बारे में बताया और वह असल जिंदगी में खुद आत्महत्या कर सकते हैं‚ यह हर कोई मानने से इनकार कर रहा है। सुशांत के जाने से बॉलीवुड ही नहीं बल्कि बिहार ने भी अपना अमूल्य कलाकार खो दिया है।

तकलीफ में नर्स

पीपीई किट जो डॉक्टरों का एक मात्र सहारा है‚ लेकिन अब यह डॉक्टर महिलाओं के लिए आफत बन गई। हर महीने होने वाली मासिक समस्या से हर महिला को गुजरना होता है। डॉक्टर महिलाओं को भी इस समस्या से गुजरना होता है। महिला डॉक्टरों व नर्स ८ घंटे काम कर रही हैं‚ जिसके कारण उन्हें मासिक धर्म में काम करना पड़ रहा है। एक पैड को केवल ५ घंटे तक ही इस्तेमाल करना होता है ‚ लेकिन महिला वॉरियर्स को एक पैड में ८–८ घंटे से ज्यादा समय गुजारना पड़ रहा है। इन सब तकलीफों से आजिज आकर नर्सों ने ४ घंटे ड्यूटी की मांग की है। सरकार इस पर क्या फैसला लेगी‚ वो तो समय बताएगा पर क्या सरकार को वॉरियर्स की परेशानियों का समाधान नहीं करना चाहिए॥

शुक्रवार, 12 जून 2020

नई तकनीक जरूरी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखा है‚ लेकिन कुछेक बाधाएं हैं। सबसे बड़ी बाधा है जाति–आधारित मुफ्त की सेवाएं सरकारों द्वारा देना‚ सब्सिडी देना। मोदी सरकार कुछ ऐसे फैसले ले कि देश के हर वर्ग के लोग इस काबिल हो जाएं कि सरकार को किसी को भी मुफ्त की कोई सुविधा देनी न पडे़Ã और इससे सरकारी खजाने पर बोझ पड़ने से भी बच जाए। इसके साथ भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए यहां नई तकनीक की जरूरत को पूरा करना होगा‚ हमारा देश तकनीक के क्षेत्र में अभी तक चीन से पीछे है‚ इसलिए यहां नई तकनीक को बढ़ावा देने की बहुत ज्यादा जरूरत है।

बेवजह की बदनामी

सब कुछ वापस आ सकता है‚ मगर कहते हैं कि बीता हुआ समय कभी लौटकर नहीं आता। कॉमनवेल्थ गेम्स में भारतीय भारोत्तोलन खिलाड़ी के. संजीता चानू पर डोपिंग के आरोप लगे थे जबकि चानू शुरू से ही आरोपों को नकार कर खुद को निर्दोष बता रही थीं। आखिरकार‚ पड़ताल से वह डोपिंग के आरोप से मुक्त हुई हैं। इस बात की खुशी है। मगर दुख इस बात का है कि बिना वजह हमारी प्रतिभा को बदनाम किया गया जिससे वह मानसिक पीड़ा का शिकार हुइÈ। कहना न होगा कि खिलाड़़ी किसी प्रतिस्पर्धा की तैयारी में स्वयं को पूरी तरह झोंक देता है।

जंगल बढ़ना हो अनिवार्य

हाल ही में गुजरात के गिर राष्ट्रीय उद्यान में एशियाई शेरों की गणना की गई‚ गणना में पिछले पांच साल में १५१ शेर बढ़े जो शेरों की कुल संख्या का करीब २९ हैं‚ पांच वर्ष पहले जहां गिर उद्यान में ५२३ शेर थे‚ वहीं अब ६७४ हो गए हैं। पर बढ़ते शहरीकरण और कटते जंगलों के कारण शेरों का मानव बस्तियों में घुसने और लोगों और पशुओं को शिकार बनाने की घटनाएं भी आये दिन होती रहती हैं‚ शेर बढ रहे हैं‚ तो जंगल को भी बढाना अनिवार्य हो गया है‚ ताकि शेरों और अन्य वन्य जीवों को जंगल में भोजन–पानी मिलता रहे॥

हाथी के नाम हिस्सा

कुछ दिन पूर्व जहां केरल में किसी खुदगर्ज इंसान ने अपने खेल के लिए अनानास के भीतर पटाखे छुपा कर तीन जिंदगियों की जान ली थी। हथनी की‚ उसके बच्चे की व उस भरोसे की जो हथिनी ने हम इंसानों पर दिखाया था। परंतु पटना के दानापुर के जानीपुर में रहने वाले अख्तर इमाम ने मानवता की प्रतिमान दी है। हाथियों के नाम अपना सब कुछ निछावर करने के बाद अब जानीपुर में सब लोग अख्तर को हाथियों वाला कहकर पुकारते हैं क्योंकि उन्होंने अपने हिस्से की लगभग ५ करोड़ रुûपये की जायदाद‚ खेत–खलिहान‚ मकान‚ बैंक बैलेंस‚ सभी दोनों हाथियों–मोती और रानी–के नाम कर दिया है।

निजी शिक्षकों की पीड़ा

वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लगभग तीन महीने की देशबंदी के कारण कई क्षेत्रों पर बहुत बुरा असर पड़ा है। इनमें से एक निजी क्षेत्र के शिक्षक भी हैं। लॉकडाउन में स्कूल तो बंद हुए ही, सरकार ने दिशा-निर्देश जारी करके बताया कि बच्चों की फीस के लिए अभिभावकों को परेशान नहीं किया जाएगा। इस बात का समर्थन पूरा देश कर रहा है कि लॉकडाउन के दौरान अभिभावकों पर फीस का दबाव डालना गलत है। मगर इस बात से भी इनकार करना मुश्किल है कि जो शिक्षक दूसरे बच्चों के जीवन को संवारने के लिए अपनी जान लगा देते हैं, आज उनका जीवन अंधकारमय होने लगा है। उन्हें देखने वाला कोई नहीं है। हमारे समाज और सरकार, दोनों को निजी शिक्षकों की परेशानियों की ओर ध्यान देना चाहिए।

फिर से विचार हो

सीबीएसई ने 12वीं कक्षा की बची हुुई परीक्षाएं 1 जुलाई से लेने की बात कही है। उसका कहना है कि प्रत्येक परीक्षा केंद्र पर दैहिक दूरी का कड़ाई से पालन किया जाएगा। मगर यह भी सत्य है कि पूरे देश में संक्रमण और मौत के आंकडे़ विकराल रूप लेते जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या जुलाई में लाख को पार कर जाएगी, जबकि मुंबई पहले ही संक्रमण के मामले में वुहान को पीछे छोड़ चुका है। ऐसे में, जब तमाम छात्र, अध्यापक और अभिभावक परीक्षा के लिए घर से बाहर निकलेंगे, तो कोरोना से संक्रमित होने की आशंका बहुत हद तक बढ़ जाएगी। मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए सीबीएसई अपने फैसले पर फिर से विचार करे।

बढ़ती ताकत

चीन दोतरफा षड्यंत्र रचकर भारत को घेरना चाहता है। पहले तो उसने नेपाल को हमारे खिलाफ उकसाया, और फिर लद्दाख में अपनी फौज बढ़ाई। खैर, नेपाल ने बाद में अपनी गलती मान ली, लेकिन चीन का जवाब देने के लिए भारत ने भी सीमा पर अतिरिक्त फौज भेज दी। इससे चीन के सुर अचानक बदल गए। वैसे, चीन को यदि अब भी लगता है कि भारत उससे कमजोर है, तो उसे अपने भ्रम से ऊपर उठ जाना चाहिए। यह हमारी बढ़ती ताकत का ही नतीजा है कि अब हम चीन को उसी की भाषा में जवाब देने लगे हैं।

और भी मर्ज हैं

आजकल कोरोना संक्रमितों के अलावा बाकी मरीजों को बहुत परेशानी हो रही है। खुद को और अपने क्लीनिक को सुरक्षित रखने के लिए कई निजी डॉक्टर टालमटोल का रवैया अपनाते हैं। बीमार को अपराधी-सा एहसास कराते हैं। किस मोहल्ले से आए हो, आधार कार्ड दिखाओ, अपनी जांच कराके आओ, चौदह दिन बाद आना, जैसी बातें की जाती हैं। खांसी-छींक आ जाए, फिर तो भगवान ही मालिक है। अगर यही हाल रहा, तो कोरोना से तो लोग कम करेंगे, बाकी बीमारियों से ज्यादा परेशान हो जाएंगे।

संयमित हो करें दर्शन

कोरोना काल में बंद सभी पूजा-स्थलों के कपाट प्रार्थनाओं के लिए खुल तो गए हैं, पर नई व्यवस्थाओं को मानते हुए ही भक्तों को अपनी श्रद्धा अर्पित करनी होगी। पूजा-स्थल तो किसी भी धर्म का हो सकता है, लेकिन कोरोना का कोई धर्म नहीं है। भक्तों ने ईश्वर को प्रतीकात्मक रूप से मास्क लगाकर और कोरोना को देवी मानकर उसके प्रकोप से बचने के लिए पूजा-अर्चना तक कर डाली, लेकिन अंधविश्वास की यह बेल भी कोरोना के प्रकोप को रोक न सकी। अनलॉक-1 मेें दर्शन के प्यासे भक्तों की भक्ति की असली परीक्षा होगी। दर्शनार्थियों को कोरोना से बचने के लिए सतर्क रहकर ही पूजा स्थलों में जाना चाहिए।

बुधवार, 10 जून 2020

बेरोजगारी की मार

कोरोना महामारी से बचाव के लिए किए गए लॉकडाउन के बाद देश का युवा वर्ग अपने रोजगार की सुरक्षा के लिए बहुत ही आशंकित है। उनको यह सुनने-पढ़ने को मिल रहा है कि आगामी वर्षों में रोजगार का बड़ा संकट आने वाला है। इस महामारी से हुई जान की हानि तो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रही है, लेकिन इससे परोक्ष रूप से देश में रोजगार, शिक्षा व उत्पादन की भी अभूतपूर्व हानि हुई है। सरकार के प्रयास और नागरिकों की जागरूकता से अब तक हम शानदार तरीके से इस महामारी से लड़े हैं, और उम्मीद है कि आगे भी यूं ही हम लड़ते रहेंगे। मगर देश के नौजवानों के मन में अपने भविष्य को लेकर आशंकाएं उपजने लगी हैं। सरकारी रोजगार के अवसर उन्हें धूमिल होते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में, हमें खास तौर से उनके लिए नीतियां बनानी होंगी। जरूरत धैर्य बनाए रखने की भी है, क्योंकि कोरोना महामारी के कारण देश कहीं न कहीं विकास की कसौटी पर बहुत पीछे चला गया है। यदि हमने धैर्य, सहयोग और आत्मनिर्भरता से इस परिस्थिति का सामना कर लिया, तो इसके परिणाम दूरगामी निकलेंगे।

सराहनीय कदम

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री ने छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए देश भर के स्कूल और कॉलेजों को 15 अगस्त के बाद खोलने का उचित फैसला किया है। वाकई, जब तक कोरोना वायरस पर पूरी तरह से नियंत्रण हासिल नहीं हो जाता, तब तक स्कूल और कॉलेजों को खोलना उचित नहीं होगा, क्योंकि शिक्षण संस्थानों में छात्रों के बीच दो गज की दूरी कायम रखना बहुत मुश्किल काम होगा। इतना ही नहीं, छोटे बच्चे तो हर समय मास्क पहनने में भी असुविधा महसूस करते हैं। उनके लिए लगातार हाथ धोना और सैनिटाइजर का उपयोग करना भी मुश्किल है। इसीलिए बहुत सारे अभिभावक सरकार की ओर नजरें टिकाए हुए थे, क्योंकि बच्चों की सुरक्षा सवापरि है। सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है। इस फैसले से सभी की चिंताएं दूर हुई होंगी।

सेहत सबका अधिकार

दिल्ली के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली वालों के इलाज का आप सरकार का फैसला उप-राज्यपाल द्वारा पलट दिया जाना निश्चय ही सराहनीय कदम है। एनसीआर के लोग बेहतर स्वास्थ्य सुविधा के कारण अक्सर दिल्ली इलाज करवाने जाते हैं। यह उनका बुनियादी अधिकार भी है, जिसका हवाला उप-राज्यपाल ने दिया। असल में, प्रत्येक नागरिक का यह अधिकार है कि वह देश के किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करवाए। हां, सभी राज्यों को अपने-अपने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाएं आधुनिक और विकसित जरूर बनानी चाहिए, ताकि मरीजों को इलाज के लिए किसी दूसरे राज्य में न जाना पड़े।

डराते आंकड़े

एक तरफ दुनिया कोरोना के कहर से त्राहि-त्राहि कर रही है, तो दूसरी तरफ संक्रमण और मौत के भयावह होते आंकड़े लोगों की नींद उड़ा रहे हैं। भारत में भी लगातार संक्रमण बढ़ रहा है। मगर दिल्ली की खराब होती हालत को सुधारने की बजाय उसे बेपरदा किया जा रहा है, जो अब भारी पड़ता दिख रहा है। दिल्ली अब कोरोना का हॉटस्पॉट है। खुद उप-मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि अगर यूं ही संक्रमण बढ़ता रहा, तो 31 जुलाई तक दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या साढे़ पांच लाख हो सकती है। ऐसा हुआ, तो यह सरकार की नाकामी ही कही जाएगी। बढ़ रहे संक्रमण को देखते हुए दिल्ली सरकार को चौतरफा कठोर कदम उठाने चाहिए। दिल्ली की तस्वीरें देखें, तो लगता है कि उसे भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है और सरकार व्यर्थ की बयानबाजी में उलझी है।

मंगलवार, 9 जून 2020

कलाकार का सम्मान करें

आधुनिक परिवेश में सांस्कृतिक मूल्यों को सहेजने का यदि कोई कार्य कर रहा है तो वह कलाकार ही हैं। मनुष्य को मनुष्यता का पाठ पढ़ाने वाली शिक्षा‚ जिसमें त्याग‚ बलिदान और अनुशासन के आदर्श निहित हैं‚ यदि कहीं संरक्षित है तो वह मात्र लोक कलाओं में ही है‚ लेकिन कोरोना महामारी के कारण देश भर में कला क्षेत्र के लोग रोजी–रोटी के लिए तरस गए हैं‚ इसके पीछे बड़ा कारण है कि दुनिया भर के लोगों को अपनी कलाओं से जगरूक करने वाले लोग अपने अधिकारों के लिए आगे नहीं आए। सरकारों ने जिस तरह से घर लौटे लोगों को रोजगार देने की मुहिम छेड़ी है‚ उसी तर्ज पर लोक कलाकारों के लिए विशेष नीति बनाकर उन्हें कुछ आÌथक सहायता उपलब्ध करवाकर उनके तनाव को कम करने की जरूरत है। 

सोशल डि़स्टेंसिंग जरूरी

महज ४ महीने पहले किसी ने सोचा भी नहीं होगा की यह अश्य वायरस माहामारी का रूप ले सकता है। एक ऐसी माहामारी‚ जिसका कोई इलाज नहीं है‚ सिवाय आपसी दूरी के। अभी तक के आंकड़े देखे तो संक्रमण के बाद भी दुनिया भर में लाखों मरीज ठीक हो चुके हैं‚ जबकि ८० फीसद मरीज घर में आइसोलेशन में रहकर खुद ही ठीक हो जाते हैं। हर रोज मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है क्योंकि लोग सोशल डिस्टेंस का पालन नहीं कर रहे हैं‚ अभी से ही कुछ शहरों में लोगों ने मास्क पहनना बंद कर दिया है‚ जाहिर सी बात है संक्रमण तो फैलेगा ही। अगर हम सब एकजुट होकर सोशल डिस्टेंस का पालन करें तो जल्द ही कोरोना जैसी महामारी से भी मुक्ति पा सकते हैं।

अनलॉक का पालन करें

सरकार ने आम जनता की परेशानियों को समझते हुए देश के कई राज्यों को नियम तथा कानून के साथ अनलॉक किया‚ लेकिन अभी भी कुछ राज्य लॉकडाउन में हैं। लोगों को यह समझना होगा कि अनलॉक करने का यह मतलब नहीं कि कोरोना का खतरा कम हो गया है। बल्कि संक्रमितों की संख्या दिन–प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। विश्व में भारत तीसरे स्थान पर आ गया है‚ जहां कोरोना से संक्रमितों की संख्या अधिक है। सोशल डिस्टेंशिग को अनदेखा ना करें। अनलॉक में बनाए गए सभी नियमों का पालन करना चाहिए। खुद भी सुरक्षित रहें और दूसरों को भी सुरक्षित रखें।

सबकी जिम्मेदारी बढ़

लॉकड़ाउन के बाद अब भारत ने अनलॉक होने का फैसला कर लिया है। राज्य की सीमाओं‚ दफ्तरों‚ दुकानों के बाद सरकार ने मंदिरों‚ चर्चों‚ मस्जिदों को खोला है। लोगों का उत्साह देखने लायक था‚ लेकिन अब कुछ भी पहले जैसा नहीं है। अब मंदिरों में घंटियों और मूÌतयों को छूने पर रोक है‚ तिलक लगाने पर भी परहेज है। वहीं मस्जिदों और चर्च में बिना कोरोना जांच के अंदर जाने पर निषेध है। भले धर्म अलग–अलग हो‚ लेकिन अब सबका मिशन एक ही है। कोरॉना से जंग देश के अनलॉक होने के बाद हम सबकी जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है।

पैर पसारती भुखमरी

कोरोना महामारी के बढ़ते प्रकोप के कारण विश्व स्तर पर भुखमरी का खतरा बढ़ गया है। सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर गरीबी की दर गत 22 वर्षों में पहली बार बढ़ी है। विश्व की 50 फीसदी आबादी लॉकडाउन में है, जिनकी आय या तो बहुत कम है या उनके पास आय के साधन खत्म हो गए हैं। दुनिया के छह करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जाने वाले हैं। भारत में भी 1.20 करोड़ लोग भुखमरी या गरीबी की स्थिति में आ सकते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक की मानें, तो दुनिया में हर रात 82.10 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं। अभी दुनिया के 13़.50 करोड़ लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं। साफ है, यदि सरकारों ने भुखमरी और गरीबी के खात्मे की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया, तो यह स्थिति और भयावह हो जाएगी। इससे बचने के लिए एक समग्र नीति बननी चाहिए।

आत्मनिर्भरता की ओर

लद्दाख में चीन की सेना द्वारा किए गए सीमा-उल्लंघन पर भारतीय आक्रोशित हैं। चीन को सबक सिखाने के लिए उपाय सुझाए जा रहे हैं। उसे आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने की बात हो रही है। कहा जा रहा है कि भारत की जीवन-चर्या का अंग बन चुके चीनी सामानों का बहिष्कार किया जाए। सच भी है कि द्विपक्षीय रिश्तों में भारत निर्यात के मुकाबले चीन से तीन गुना अधिक सामान आयात करता है। जनसंख्या की दृष्टि से सभी के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जुटाने के संदर्भ में भी भारत में आत्मनिर्भरता का अभाव जग जाहिर है। यही नहीं, चीन के सामान की तुलना में भारतीय सामान का महंगा होना भी चीनी सामान के व्यापक उपयोग का बड़ा आधार है। मगर भारत में कौशल की कमी नहीं है। यदि भारत अपनी जनसंख्या को नियंत्रित करके इस कौशल का सदुपयोग करे, तो किसी अन्य देश से उसे उपभोक्ता वस्तुओं के आयात की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी और जीवन के लिए उपयोगी तमाम क्षेत्रों में हमारी आत्मनिर्भरता को दुनिया का कोई देश रोक नहीं सकेगा।

एक गुजारिश

दक्षिण दिल्ली नगर निगम ने इस वर्ष प्रॉपर्टी टैक्स सिर्फ ऑनलाइन जमा करने की बात की है, जबकि इसका सॉफ्टवेयर एकदम निम्न स्तरीय है। कई-कई दिनों तक मोबाइल पर ओटीपी ही नहीं आता, जिसके बिना आगे कोई काम नहीं कर सकते। बैंक के खाते से राशि ज्यादा कटती है, लेकिन निगम के खाते में कम दिखाई देती है। इससे सब परेशान हैं, विशेषकर वरिष्ठ नागरिक। नगर निगम को चाहिए कि जब तक इनका सॉफ्टवेयर ग्राहक के अनुकूल नहीं हो जाता है, तब तक चेक द्वारा ही वह भुगतान स्वीकारे। आखिर बैंक भी तो रोज लाखों चेक ले-दे रहे हैं।

हताश होते बेरोजगार

जहां एक तरफ केंद्र सरकार देश के नौजवानों को आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा दे रही है, तो वहीं कुछ युवा नौकरी जाने के तनाव में आत्महत्या कर रहे हैं। प्रवासी मजदूरों की पीड़ा भी किसी से छिपी नहीं है। एक नए अध्ययन के मुताबिक, करीब ढाई करोड़ नौजवान अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। इनके लिए रोजगार के अवसर जुटाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। फिर भी, बेरोजगार हुए नौजवानों का आत्मविश्वास टूटने न पाए। यदि देश के युवाओं पर ही इस तरह की त्रासदी आएगी, तो देश का भविष्य क्या होगा? इस विपदा की घड़ी में जरूरत है युवाओं को उनकी शक्ति और योग्यता का स्मरण करा सकने वाले जामवंतों की, जो उन्हें आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में सही राह दिखा सकें। सरकार युवाओं को इसके लिए प्रेरित करे और उन्हें सही राह दिखाए।

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री कितनी बदल जाएगी

ना सितारों का जमघट ना फैन्स की भीड़ क्या आपने सोचा है कि सोशल डिस्टैंसिंग के इस दौर में एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री कितनी बदल जाएगी. कोरोना वायरस के कारण दुनिया ही बदल रही है तो फिर हॉलीवुड,बॉलीबुड सबको बदलना होगा. पर फ़िल्मों, सितारों और दर्शकों पर इन पाबंदियों का असर न पड़े, इसके लिए सिनेमा जगत ने ख़ास इंतज़ाम करना शुरू कर दिया है.

लॉकडाउन के बाद अब दुनिया

दो महीने से ज़्यादा के लॉकडाउन के बाद अब दुनिया के तमाम देशों में इसे धीरे धीरे हटाया जा रहा है. ऐसे में आपको नहीं लगता कि ये ढाई महीने बड़ी जल्दी बीत गए? हमने सोचा भी नहीं था कि लॉकडाउन का मुश्किल दौर इतनी जल्दी गुज़र जाएगा. हम घर में, पाबंदियों में रहने की आदत ही डाल रहे थे कि इससे रियायतें भी मिलने लगी हैं. आम तौर पर होता यही है कि बुरा वक़्त बिताना मुश्किल होता है. आप ट्रेन या फ्लाइट का इंतज़ार करते हों, तो समय बिताते नहीं बीतता. मगर, किसी प्रिय के साथ हों या किसी पसंदीदा जगह घूमने जाते हों, तो समय मानो फुर्र से उड़ जाता है. ऐसे में लॉकडाउन का वक़्त, जिसे ज़्यादातर लोगों ने बुरा समय ही माना था, वो इतनी जल्दी कैसे गुज़र गया? असल में हम समय के गुज़रने का आकलन दो तरह से करते हैं. पहला तो ये कि अभी समय कितनी जल्दी बीत रहा है? और, पिछला हफ़्ता या पिछला दशक कैसे बीता था?

गर्भवती गाय का विस्फोटक पदार्थ खाने का मामला

हिमाचल प्रदेश में एक गर्भवती गाय का विस्फोटक पदार्थ खाने का मामला सामने आया है. इस मामले में एक शख़्स को गिरफ़्तार किया गया है. समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक़, यह मामला बिलासपुर ज़िले में झंडूता थाना क्षेत्र में पड़ने वाले डाढ गांव का है. इस गांव के निवासी गुरदयाल सिंह ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी गाय को विस्फोटक खिलाया गया है जिससे उसे शारीरिक चोट आई है. एएनआई के मुताबिक़, बिलासपुर के पशुपालन विभाग के डिप्टी डायरेक्टर ने बताया कि जिस वक़्त यह घटना हुई उस समय गाय गर्भवती थी. विस्फोटक की वजह से गाय के जबड़े का ऊपरी और निचला हिस्सा बुरी तरह ज़ख्मी हो गया.

गृहमंत्री शाह, सीएम बनर्जी पर जमकर बरसे

पश्चिम बंगाल जन संवाद रैली के दौरान गृहमंत्री अमित शाह, सीएम ममता बनर्जी पर जमकर बरसे. वर्चुअल रैली में अमित शाह ने कहा, ''ममता दी आप हमारा हिसाब मांगती हो, मैं तो हिसाब लेकर आया हूं. लेकिन आप भी कल प्रेस कांफ्रेंस करके अपनी सरकार का हिसाब दीजिए और कहीं बम धमाकों या बंद हुई फैक्टरियों का नंबर मत बता दीजिएगा. भाजपा के मार दिए गए कार्यकर्ताओं की संख्या मत बता दीजिएगा. यूपीए ने 10 साल में एक बार 3.5 करोड़ किसानों का 60 हजार करोड़ रुपये का ऋण माफ किया, लेकिन आंकड़े कुछ और है. मोदी जी ने 9.5 करोड़ किसानों के बैंक अकाउंट में 72 हजार करोड़ रुपये पहुंचाने का काम किया है. साल हर किसान को 6 हजार रुपया पहुंचाया जा रहा है.''

कौन जिम्मेदार

दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने शहर में कोविड-19 की स्थिति और घातक वायरस को फैलने से रोकने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई थी. इस बैठक के बाद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हमने दिल्ली के हालातों को देखते हुए एलजी साहब से फैसले को वापस लेने की अपील की थी लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार कर दिया है. उन्होंने कहा कि अगर ऐसे में दिल्ली के हालात बिगड़ जाते हैं तो उसके लिए कौन जिम्मेदार होगा, वहीं उन्होंने कहा कि दिल्ली में कम्युनिटी स्प्रेड की बात केंद्र सरकार के अधिकारियों ने मानने से इंकार कर दिया है.

''प्रवासियों को 15 दिनों में वापस भेजा जाए

प्रवासी मजदूरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को अहम फैसला सुनाया. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''प्रवासियों को 15 दिनों में वापस भेजा जाए. प्रवासियों को नौकरी देने के लिए एक स्कीम तैयार हो. रोजगार प्रदान करने के लिए डेटा की जांच हो. साथ ही प्रवासियों की पहचान के लिए योजना निर्धारित हो. प्रवासियों की स्किल मैपिग हो ताकि तय करना आसान हो कि उन्हें कुशल या अकुशल कौन सा कार्य सौंपा जाए. प्रवासियों के खिलाफ सभी शिकायतों व मुकदमों को को वापस लिया जाए. कोरोना वायरस के गरीबी के खिलाफ दुनिया की लड़ाई को कई बरस पीछे धकेल दिया है. वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष मुल्पास ने आशंका जताई है कि कोरोना के आसार से दुनिया में 6 करोड़ से ज्यादा लोग अत्याधिक गरीबी में धकेले जा सकते हैं.

महामारी के खिलाफ लड़ाई

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ लड़ाई को लेकर केंद्र सरकार पर सवाल उठाने वालों पर सोमवार को पलटवार करते हुए कहा कि इस जंग में मुख्य विपक्षी पार्टी ने अमेरिका, स्वीडन में लोगों से बात करने, इंटरव्यू लेने के अलावा और क्या किया? शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘एक राष्ट्र, एक जन और एक मन' के साथ कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया जिसकी वजह से आज भारत, दुनिया में अच्छी स्थिति में है.  ओडिशा के लिए एक ‘डिजिटल रैली' को संबोधित कर रहे शाह ने कहा, ‘विपक्ष के कुछ नेता हम पर सवाल उठाते हैं. लेकिन खुद उन्होंने क्या किया? कोई स्वीडन में, कोई अमेरिका में लोगों से बात करता है, इसके अलावा और क्या किया आपने?'

धार्मिक स्थलों, होटलों और रेस्तरां आदि को खोलने की अनुमति

कोरोनावायरस (Coronavirus) के मामले में तेज वृद्धि के बीच आज से Unlock1 का पहला चरण शुरू हो रहा है. गृह मंत्रालय ने इस चरण में, धार्मिक स्थलों, होटलों और रेस्तरां आदि को खोलने की अनुमति दी है. जिसके बाद आज काफी संख्या में मंदिर खोले गए हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) सोमवार को गोरखपुर पहुंचे और गोरखनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना की. सरकार ने आज से मंदिर-धार्मिक स्थलों को फिर से खोलने की मंजूरी दी है. हालांकि, इस दौरान प्रसाद का वितरण नहीं किया जाएगा.

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म

देश में राजनीति अब सड़कों से अधिक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर हो रही है. यह हालत कोरोना संकट के आने से पहले से देश में देखी जा रही है. राजनीतिक दल लगातार ट्वीटर और फेसबुक जैसे माध्यमों से ही सक्रिय रहे हैं. ऐसे में अपनी मांग को पूरा करने के लिए मध्यप्रदेश के किसानों ने भी ऑनलाइन माध्यम को चुना है. किसान ऑनलाइन सत्याग्रह कर रहे हैं.

देश में Unlock1 का पहला चरण

देश में Unlock1 का पहला चरण शुरू होने के बीच कोरोनावायरस (Coronavirus) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. भारत में कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा बढ़कर ढाई लाख के पार जा चुका है. स्वास्थ्य मंत्रालय (Health Ministry) की ओर से सोमवार सुबह जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में कोरोनावायरस मरीज़ों की कुल संख्या 2,56,611 हो गई है और जबकि इस वायरस से अब तक 7135 लोगों की मौत हो चुकी है. इधर जैसे -जैसे कोरोना के मरीज बढ़ते जा रहा हैं वैसे-वैसे व्यवस्था की पोल खुलती जा रही है. सिर्फ दिल्ली में ही हर दिन एक हजार से अधिक मरीज सामने आ रहे हैं जिनमें से कई को बेड नहीं मिल रहा है.

साजिश या मजाक

पिछले कुछ दिनों में बेजुबान जानवरों को बारूद खिलाने के दो मामलों सामने आए। इन्होंने सभ्य कहे जाने वाले मानव-समाज को शर्मसार किया है। एक घटना केरल की है, तो दूसरी हिमाचल प्रदेश की। इस तरह के कृत्यों से जहां हर शांतिप्रिय लोगों में रोष है, तो दूसरी तरफ किसी साजिश की आशंका से भी इनकार नहीं किया जा रहा है। बिल्कुल एक ही तरीके से जानवरों को बारूद खिलाकर उनको चोटिल करने के पीछे कोई साजिश या प्रयोग तो नहीं? पूरा विश्व अभी कोरोना महामारी से जूझ रहा है, लेकिन पशुओं के प्रति ऐसे क्रूर रवैये देखने को मिल रहे हैं। ये मानव समाज के लिए नए खतरे की शुरुआत हो सकते हैं। इसकी जांच गंभीरता से करने की जरूरत है। दोषी कोई भी हो, उसे सख्त सजा मिलनी चाहिए।

दुर्भाग्यपूर्ण फैसला

दिल्ली सरकार ने फैसला किया है कि जब तक कोरोना महामारी है, तब तक दिल्ली सरकार के अस्पताल सिर्फ दिल्ली वालों का इलाज करेंगे। दिल्ली सरकार का यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। देश इस समय बड़े संकट में है। हमें अभी एक देश होकर सोचना चाहिए, न कि एक राज्य होकर। दिल्ली सरकार के इस फैसले से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिलेगा, जो हमारे देश की अखंडता के लिए घातक हो सकता है। क्या डॉक्टर सिर्फ इसलिए रोगी का इलाज न करें, क्योंकि वह किसी और राज्य का है? यह उनके भगवान रूपी पेशे को क्या शोभा देता है? यह आदेश हमारे देश के नागरिकों को मिले मौलिक अधिकारों का भी हनन है। यदि सभी राज्य ऐसे ही करने लगे, तो भारत राज्यों का संघ नहीं, सिर्फ राज्य बनकर रह जाएगा। दिल्ली सरकार को अपने इस राजनीतिक फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए, क्योंकि दिल्ली सिर्फ राज्य की ही नहीं, देश की राजधानी है।

एनसीआर शामिल करें

अब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में कोरोना के उन्हीं मरीजों का इलाज होगा, जो दिल्ली से हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया, यह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री जानें, लेकिन जिस तरह से दिल्ली में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है, उसे देखकर केजरीवाल का यह फैसला कुछ हद तक सही जान पड़ता है, क्योंकि दिल्ली में आबादी के मुताबिक स्वास्थ्य-केंद्रों और डॉक्टरों की कमी हो सकती है। बेशक केंद्र सरकार के अस्पतालों को इस फैसले से बाहर रखा गया है, लेकिन मुख्यमंत्री को चाहिए कि वह दिल्ली से कुछ किलोमीटर सटे क्षेत्र के लोगों को, जो दूसरे राज्य के नागरिक हैं, दिल्ली में कोरोना इलाज की इजाजत दें, ताकि कोई भी उनके इस फैसले पर राजनीति करने को कोशिश न कर सके। क्या मुख्यमंत्री ऐसा करेंगे?

अल्पसंख्यकों का ख्याल

अमेरिका में जॉर्ज फ्लॉयड नामक अश्वेत नागरिक की मौत के बाद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही, लेकिन सच यह भी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का अश्वेतों के प्रति रवैया सहानुभूतिपूर्ण नहीं रहा है। इसी कारण जॉर्ज फ्लॉयड की मौत का आक्रोश समूचे अमेरिका में देखा जा रहा है। आज अमेरिका नस्लवाद और कोरोना के चलते दोहरी मार झेलने को विवश है। न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया को इस घटना से सबक सीखना चाहिए कि बहुसंख्यकों के साथ-साथ अल्पसंख्यकों का ख्याल रखना भी निहायत जरूरी है। यदि लोकतांत्रिक देश का एक भी नागरिक भय और असंतोषपूर्ण जीवन जी रहा है, तो उसका असंतोष कभी भी फट सकता है। अगर हम भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें, तो पिछले कुछ वषार्ें से यहां भी अल्पसंख्यकों के प्रति माहौल ठीक नहीं रहा है। अमेरिका की घटना से हम भी सबक ले सकते हैं।

सोमवार, 8 जून 2020

मानसिकता बदलें लोग

एक श्वेत पुलिसकर्मी डेरेक शोविन द्वारा अपने घुटने से कुचल कर एक अश्वेत नागरिक जार्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद शुरू हुए नस्लभेद का विवाद इतना विकराल रूप ले लिया कि दुनिया का सर्वशक्तिमान नेता कहे जाने वाले राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भी भय की वजह से व्हाइट हाउस में बने सबसे सुरक्षित बंकर में कुछ समय के लिए छुपना पड़ा। यहां गलत नीतियों के विरु द्ध लोग एकजुट होकर सत्ता से सवाल कर रहे हैं और संविधान को बचाने की बात कर रहे हैं। इसी तरह से भारत में भी जनतंत्र को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। हमें संविधान को बचाने की बात करनी होगी‚ सत्ता से हमेशा सवाल करना चाहिए।

सही या गलतॽ

दिल्ली सरकार ने कहा कि यहां के स्वास्थ्य केंद्रों में कोरोना के उन्हीं मरीजों का इलाज होगा‚ जो दिल्ली से हैं। दिल्ली सरकार ने ऐसा फैसला क्यों लिया‚ यह तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंंद केजरीवाल ही जानें। इस फैसले पर सबकी अपनी राय भी होगी और कुछ तो इस फैसले को राजनीति के चश्मे से भी देखेंगे‚ लेकिन जिस तरह दिल्ली में कोरोना संक्रमित लोगों का आंकड़ा बढ़ रहा है और आबादी भी जितनी ज्यादा है‚ उससे एकबार तो लगता है उनका फैसला सही है।

नियमों का पालन जरूरी

देश में लाक डाउन संबंधित नियम तो बहुत बना दिए गए हैं‚ परन्तु उन पर अमल कितना होता है यह देखने वाली बात है। पहले की ही तरह कानून आम दिनों में जैसे तोड़े जाते रहे हैं‚ वैसे ही इस दौर में भी टूट रहे हैं। सड़क किनारे मौजूद कानून के रखवाले भी नियम टूटने पर मूकदर्शक बने खड़े रहते हैं। दुकानों पर तय दूरी को ताक पर रख दिया जाता है। जनप्रतिनिधि भी इससे अछूते नहीं हैं। कहीं चुनाव की तैयारियों को लेकर एकत्रित हो रहे हैं तो कोई नाई से बाल कटवा रहा है। जबकि कोरोना महामारी के शुरुûआती समय में ही सरकार और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने जनता से यह अपील की थी कि मास्क हर किसी को पहनना होगा। साथ ही सोशल डि़स्टेंसिंग का पालन अनिवार्य है। मगर कई लोगों ने इस निर्देश पर अमल नहीं किया और अब वो सारे लोग कोरोना की चपेट में हैं॥

कोई बुरा ना माने,

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहता हूं कोई भी मंदिर अगर बनता है तो उसके इतिहास से आप उसे गलत या सही कह सकते हैं कि क्यों बन रहा है लेकिन एक चीज हम ...